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________________ ( १६५ ) एहवा समकितने विषै जे कोई अतिचार लाग्या होय ते लाडं, जिन बचन सांचा न सध्या होय, न प्रतित्याहोय, न बच्चा होय, पर दर्शगायें। बाकांक्षा बंछा कौधौ होय, फल प्रते संशय संदेह आण्णा होय, पर पाषण्डी को प्रशंसा की हुवे सावतो परिचय कोधी होय । एवात्र समकित रुपौ रत्न उपरे मित्य्यात्व रूप रंज मैल खेह लागो होय तस्समिच्छामि दुक्कडं | ॥ अथ बारे व्रत ॥ पागाइवायाउ पढमे अगुव्वए प्रथम देशथी व्रत प्राणाति पात को विरम, व्रत पांच बोले करौ उलखौजे, द्रव्यथको निवर्तयो व्रत थ लाउ G मोटको चस जौव बेईन्द्रो तेईन्द्री चौईन्द्रा पंचेन्द्रौ विन अपराधे आकुटी हणवानी विधि करीन' सउपयोग हणूं नहीं हगाउ नही मनसा वायसा कायसा | द्रव्यथको एहिज द्रव्य, क्षेत्रथको सर्व क्षेत्रां मांहि कालयको जावजीबलग, भावयको गग दोष रहित उपयोग सहित गुणधको संबर निर्जरा, एहवा म्हांरे पहला व्रतने' विषै ने कोई अतिचार दोष लागो होय ते मलाउं ।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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