SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमस्कार सामी सक्षारमी समाणेमी कल्लाणं मंगल फझ सत्कार देऊ सनमान करु कल्याणकारी . . मंगल कारी देवयं चेयं मम वासामी मस्यएगह बंदामी धर्म देव चित्त प्रसन्न सेवना कर्फ मस्तके करी बंदना कारी ज्ञान चंत इच्छामि पडिकमित्रो इरिया वहियाए इच्छं, बाच्छु प्रतिक्रमवोते मार्ग में विषै ज्यो निवत्तेवो । गमगागमगा पागक्कम विराधना हुई जातां . तां प्राणी वेन्द्रियादि नों होय आक्रमण करणूं ते यद्य" वीयक्षमनों हरियकममो पोसा उत्तिंग - पणग योजको दाव" हरि लोलीके ओसको कीडीका विराइगा ए नीलण फूलण दावणूं बेईदिया CATT ulटया ..Cr दग मट्टौ मकड़ा संताणा संकमरमे ने पाणी को माट्टीका मकड़ी का जाला मई वो तो जो दावलो जीव उया होय मे नावा विराछिया में जीव विगध्यो होय एकेन्द्री जीव योनी जीव तेईदिया चरिंदिया पंचेंदिया पभी तेन्द्रो जीप चौदन्द्रो जीव पंचान्टी जीत्र सनमुक
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy