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ध्यान शुधा रस सम दम मन गली। संग त्याग्यो हो जाणी माया जाल ॥ अ० ॥२॥ बौर रसे करी हो कीधी तपस्या विशाल। अनित्य अशरण मावन अशुभ निरदली ॥ जग झूठो हो जाण्यो आप कृपाल । प. ॥३॥ आत्म मंत्री हो सुख दाता सम परिणाम ।। एहौज अमिव अशुभ भावे कलकलो॥ एहवी भावन हो भाया जिन गुण धाम || अ० ॥ ४ ॥ लौन संवेगे हो ध्याया शुक्ल ध्यान ॥ क्षायक श्रेणी चढी हुपा विली ॥ प्रभु पाम्या हो निरावरण सुजान ॥ प० ॥ ५ ॥ उपशम रस भरी हो वागरी प्रभु वा ॥ तन मन प्रेम पाया जन सांभली ।। तुम वच धारी हो पाम्या परम कलयाण ।। अ० ।। ६ ।। जिन अभिनंदन हो गाया तन मन प्यार || संवत उगणीसैनें भादवे पघटली ।। सुदि इग्यारस हो हुमो हर्ष अपार ॥ म० ॥ ७॥
श्री सुमति जिनस्तवन ।
(मुरख जीवा रे गाफल मत रहे ) मुमतिजिनेश्वर साहेव शोभता ॥ सुमति करण संसार ॥ सुमति जप्यांधी सुमति वधै घणौ ॥ सुमति सुमति दातार ॥ सु० ॥ १॥ ए आंकणी ॥ ध्यान