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________________ ( १५१ ) गुरु मोल लियां मिले के नहीं मिले- नहीं मिले, अमूल्य है । • साधुजी तपस्या करै ते व्रत में के अब्रत में व्रत पुष्टको कारण है अधिक निर्जग धर्म है । - साधुजी पारणो करे ते व्रत में के अब्रत में अव्रतमें' नहीं, किगन्याय ? साधुके कोई प्रकार भव्रत रही नहीं सब सावद्य जोगका त्याग छै तिगसूं निरजरा थाय छे तथा व्रत पुष्टको कारण है । 1 2 श्रावक उपवास आदि तप करे ते व्रत में को अब्रत में - व्रत में । -- • श्रावक पारणो करे ते व्रत में के अब्रत में - ―――― अव्रत में किणन्याय ? श्रावक को खाणों पौगों पहरणों ए सर्व अव्रत में है श्रीउववाई तथा सूयगडांग सूत्र में बिस्तारकर लिख्या है । ११ साधुनी नें सूजतो निर्दोष आहार पाणौ दियां कांई होवे, व्रतमें' के अब्रतमें - अशुभ कर्म चय थाय तथा पुन्य बंधे है, १२ मं व्रत है 1 १२ साधुजौ नें सूजतो दोषसहित आहार पाणी दियां कांई होवै तथा व्रत में के अव्रत में - श्री भगवती सूत्र में कह्यो है, तथा श्री ठाणांग 1
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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