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________________ ॥ अथ पानाकी चरचा ॥ . १ जीव रूपीक अरूपो, अरूपौ किगन्याय कालो पौलो नौलो रातो धोलो ए पांच वर्ग नहीं पाये दूण न्याय । २ अौव रूपौक्षि अरूपी, रूपी अरूपो दोनं ही के किगान्याय धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय काल ए च्या तो अरूपी और पुद्गलास्तिकाय रूपौ। ३ पुन्य रूपौक अरूपौ, रूपी ते किगन्याय पुन्यते शुभ कर्म, कर्म ते पुगल पुद्गल ते रूपौ हौ छ। ४ पाप रूपीक अरूपी, रूपी ते किणन्याय पापते ___ अशुभ कर्म कर्मते पुद्गल पुगल ते रूपी हौ छ। ५ पासव स्पोक अरूपो, अरूपी ते किमान्याय आसव जौवका परिणाम है, परिणामते जीव है, जीव ते अरूपी छ, पांच वर्ण पावे नही इण न्याय । ६ संबर रूपोके अरूपी, अरूपो किणन्याय पांच वर्ण माव नहीं।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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