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( ११० ) नहीं बंदिया दान देवाने सुंबजरे। ते भिक्षा मांगत घर २ फिरै भटकै भांड जिम डुमजरे ॥ १० ॥ १३ ॥ साधुनै वांद्या भल भावस्युं दोधो अढ़लक दांनजरे। तेतो भरथे सर जांणज्यो ज्यारो पर सिधलोकमें नामव रे॥ अ० ॥ १४ ॥ साधांने बांद्यां थका कटै करमारा फंदनरे। नीच गोवरो क्षय कर ऊंच गोवरो वंदवरे ॥ अ० ॥ १५ ॥ चोथी गत देवता तौं भाषौ श्रीमुनिरायजरे। सुख तिहा नित भोगवै कुंण कर्म उपन जायजरे ॥ ५० ॥ १६ ॥ बैराग संजम पालै सदा पर श्रावकरो धर्मजरे ते खग लोकमें उपज बांधिने सुध कर्मजरे ॥ १० ॥ १०॥ उर अकाम निरजरा करी पत्यांन तप कर जांगजरे । ते सोल पाले लज्या करी ते उपजे वैमाणिकजरे ॥ १० ॥ १८॥ पांचमी गत सिधां तौँ अनंत सुखांरी खांणजी। कोण करवी कर उपन सिद्ध गत माहै आगजरे ॥ १० ॥ १६ ॥
सह परिसावोस दोयजरे । वार भेदे तप तपै तेहनै मिगत होयजरे ॥ अ० ॥२०॥ देव अरिहंत नै ओलख्या ओलख्या गुरु निग्रंथनरे। धर्म दयामय आदर एहीज मुक्तरी पंथजरे ॥ . ।। २१ ॥ तोन कालना मुखदेव तांतणा भेला कोज कुलजरे। तेहने अनंति वर्ग वधारिये नहीं मिा