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________________ ( १०० ) वसेह । कुगुरु० ॥ १० ॥ खीर शक्कर थरमागा बड़ी, गर्व हिये विभूषा करी। खाद्य मिलन का मांसो धरह । कुगुरु० ॥ ११ ॥ गृहस्थ जिसि करे व्यापार, वेचे वस्त्र पुस्तक मार । व्याज बटे धन उपजावेह । कुगुरु० ॥ १२ ॥ आठ महरले साठ घड़ी, पांच प्रमाद सं प्रीतड़ी। क्रिया पड़िकमगो न करह। कुगुरु० ॥ १३ ॥ वैठिया पोठिया चलावे भार, गाड़ी वैठी करे विहार । ईर्या सुसति किसी पालेह । कुगुक० ॥ १४ ॥ हमे गस्सै बोले फारसौ, न्हाय धोय जीवे पारसी। रङ्गा चङ्गा रहे निःस्मन्देह । कुगुरु० ॥१५॥ अभक्ष्य आहार ने बाड़ा पड़े, सौख दिया तो उलटा लड़े। पापानन्द न पचखागोह। कुगुरु० ॥ १६ ॥ सवै देवी दुर्गा मात, वरगी करे वेसे नय पात। दुष्ट जाप दिल सांह करेह । कुगरू० ॥ १७ ॥ रात दिवस औषध बारस, गोली चणे वारे सन रङ्ग । नाड़ी तिगंछा वैद्यका करेह । अगुरु० ॥१८॥ विषय कितोल कधा बाई चरित्र, वांचे कान करे अपवित्र । शुद्ध कथा न सम्भलावेह । कुगुम० ॥ १६ ॥ पोते न चालें सूधे राहा. और शाइ चलाव काहा। कामगा चोराहा दगाह । कुगुम० ॥ २० ॥ गश्त पान कर पैसा लौए, कामगा मोह वश करदीए । पाम दुष्ट कर पेट भरेह ।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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