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* जैन-गौरव-स्मृतियों
जाने पर फलित हो सकता है । प्रश्नोपनिषद में कबन्धी कात्यायन का उल्लेख पाया जाता हैं। कबन्धी और ककुद ये दोनों शब्द शारीरिक पंगुता के वाचक हैं। आचार्य बुद्ध घोष ने लिखा है कि ककुद कात्यायन ठंडा पानी नहीं पीता था अपितु उष्ण जल पीता था। उसके अनुयायी भी तपस्वी जीवन व्यतीत करते थे । कात्यायन का शिष्य-सम्प्रदाय भी विशेष था। वह विपुल शिष्यवृन्द का नायक और प्रसिद्ध मत प्रवर्तक था।
, यह उच्छेदवाद या भूतवाद का प्ररूप है। इसके सिद्धान्त का वर्णन इस प्रकार पाया जाता है:-न दान हैं, न यज्ञ है, न होम है, न पुण्य या
- पाप का अच्छा-बुरा फल होता है, न यह लोक है न अजित केश कम्बल' 'परलोक है, न माता है न पिता है, न अयोनिज (देव) .. . सत्व हैं और न इस लोक में वैसे ज्ञानी और समर्थ श्रमण या ब्राह्मण है जो इस लोक और परलोक को स्वयं जानकर और साक्षात् कर कहेंगे । मनुष्य मरे हुए मनुष्य को खाट पर रख कर ले जाते हैं, उसकी निंदा-प्रशंसा करते हैं । हड्डियाँ कबूतर के रंग की हो जाती हैं और सब कुछ भस्म हो जाता है । मूर्ख लोग जो दान देते हैं उसका कोई फल नहीं होता । आस्तिकवाद झूठा है । मुर्ख और पंडित सब शरीरं के नष्ट होते ही उच्छेद को प्राप्त हो जाते हैं । मरने के बाद कोई नहीं रहता।" . .
- अंजित केस कम्बल का यह वाद नास्तिक चार्वाक दर्शन से मिलता हैं । इसे भूतवाद भी कहा जाता है । अजित केस कम्बल अजित केस के वने 'हुए कम्बल को ही ओढ़ता था अतः वह इसी नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह भी उस काल का, विपुल शिष्यवृन्द का नायकं और प्रसिद्ध मत "स्थापक था।
भगवान महावीर और बुद्ध को छोड़कर तत्कालीन धर्मप्रवर्तकों में मंखली पुत्त गोसाल का महत्वपूर्ण स्थान था । उसने आजीविक सम्प्रदाय
. . की स्थापना की थी। इसः सम्प्रदाय को भी उस समय में मंखलीपुत्त पर्याप्त महत्व मिला, ऐसा प्रतीत होता है । सम्राट अशोक गोसालः- के शिलालेखों में आजीविक सम्प्रदाय का भी उल्लेख किया
गया है। अशोक के पौत्र दशरथ ने भी उनके लिये रहने · को गुफाएँ भेंट की थी ऐसा वर्णन पाया जाता है। इस परसे इस सम्प्रदार
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