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* जैन-गौरव-स्मृतियां Sheet
कौशाम्बी के राजा . शतानिक; मगध नरेश श्रेणिक ( बौद्ध ग्रन्थों में जिसे 1 बिम्बिसार भी कहा गया है । )जैन सूत्रों में संभासार नाम भी मिलता है। सेणिय नाम तो जैन और बौद्ध दोनों प्रथों में पाया जाता है। श्रोणिक का पुत्र राजा कौनिक (अजात शत्रु), उसका पुत्र राजा उदायी, . उञ्जनी के राजा चएडप्रद्योत, पोतनपुर के राजा प्रसन्नचन्द्र वीतभय पट्टन का उदायी राजा आदि सुख्य हैं । कथा साहित्य परसे यह मालूम होता है कि . कम से कम तेवीस राजाओं ने भगवान् महावीर का उपदेश सुन कर उनका धर्म स्वीकार किया और उनके दृढ़ अनुयायी हो गये।
जैन सूत्रों में जो भगवान के समवसरण और धर्म कथा का वर्णन आता है उससे यह प्रतीत होता है कि राज वर्ग के लोग भगवान् के उपदेश को सुनने के लिए अत्यधिक उत्सुक रहते थे । बड़े २ प्रतापी राजा अपने अन्तः पुर, दरवारी गण और दल बल सहित तीर्थङ्कारों का उपदेश सुनने के लिए जाते थे । भगवान् के उपदेश इतने सचोट होते थे कि अनेक । राजाओं ने उससे प्रभावित होकर दीक्षा धारण करली थी। मगध देशभगवान् की मातृभूमि के अप्रगण्य नृपति भगवान् के विशेष सम्पर्क में
आये. महाराजा श्रोणिक, उनका पुत्र कोणिक और तत्पुत्र उदायी ये बड़े धर्मातक राजा हुए। यह परम्परा अशोक वर्धन और सम्प्रति तक चलती रही थी। महान् सिकन्दर ने जब भारत पर आक्रमण किया तब नव नन्द वंश ने शिशुनाग राजाओं का. राज्य ले लिया । इस नन्द वंश के आश्रय में भी सहावीर का धर्म विकासित हुआ। इसके बाद नन्दवंश के अन्तिम नन्द के पास से मौर्यवंश के महाराजाधिराज चन्द्रगुप्त ने राज्य ले लिया तब भी जैनधर्म का खुब विकास हुआ। भारत के प्रथम इतिहास प्रसिद्ध महाराजाधिराज चन्द्रप्तगु जैनधर्मानुयायी हो गये थे। स्वयं जैन थे। दिगम्बर सम्प्रदाय के कथानुसार.चन्द्रगुप्त ने राजपाट छोड़कर. अन्त में मुनि दीक्षा धारण कर ली थी और भद्र बाहु स्वामी के साथ वह मैसूर चला गया था। वहाँ श्रवण वेलगोल की गुफा में ही उसका देहोत्सर्ग हुआ । चन्द्रगुप्त बिन्दुसार और उसके बाद अशोक भी जैनधर्म के साथ गाढ़ सम्पर्क रखने वाले राजा हुए है | सम्राट अशोक का जैनधर्म के साथ सम्बन्ध था इस विषयक प्रमाणों में किसी तरह का विवाद नहीं है । अशोक ने अपने उत्तर जीवन में बौद्ध धर्म को विशेषतया स्वीकार कर लिया था तदपि जैनधर्म के साथ उसका व्यवहार ।
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