________________
* जैन गौरव-स्मृतियां ki
. भगवान के उपदेश को सुनकर वीरागंक, वीरयश, संजय, एणेयक, ..सेय, शिव उदयन और शंख इस समकालीन राजाओं ने प्रवज्या अंगीकार : की थी। अभयकुमार, मेघकुमार आदि अनेक राजकुमारों ने घर-बार छोड़कर व्रतों को अंगीकार किया । स्कन्धक प्रमुख अनेक तापस तपस्या का रहस्य जानकर भगवान् के शिष्य बन गये । अनेक स्त्रियाँ भी संसार की असारता जानकर श्रमणी संघ में सम्मिलित हो गई थीं। भगवान् के गृहस्थ अनुयायियों में मगधराज श्रेणिक, कोणिक अधिपति चेटक, अवन्तिपति चण्डप्रद्योत आदि थे। आनन्द आदि वैश्य श्रमणोमालकों के साथ ही साथ शकडालपुन जैसे कुम्भकारमी उपासक संघ में सम्मिलित थे। अर्जुनमाली जसे दुष्ट से दुष्ट हत्यारे भी उनके पास वैर त्याग कर के शान्तिरस पानकर तुमाधारण कर दीक्षित हुये थे। भगवान के उपदेश सव श्रेणियों के उपयोगी आर हितकर होते थे। अतः सब श्रेणियों के व्यक्ति भगवान् के संघ में साम्मलित हो सके थे । भगवान का उपदेश सर्वतोमुखी था अतः उसका पुण्यप्रभाव भी सर्वतोमुखी हुआ था ।
. संबसे आश्चर्य की बात यह है कि भगवान् के सर्वप्रथम शिष्य ब्राह्मण पण्डित हुए,- इन्द्रभूति गौतम । जो अपने समय के एक धुरन्धर दाशनिक, साथ ही क्रियाकाण्डी ब्राह्मण माने जाते थे वे भगवान् के प्रथम शिष्य हुए। गौतम पर भगवान के अप्रतिम ज्ञान प्रकाश का और अखण्ड तपरतज का वह विलक्षण प्रभाव पड़ा कि वे यज्ञवाद का पक्ष छोड़कर भगवान् के पास चार हजार चार सौ ब्राह्मण विद्वानों के साथ दीक्षित होगये । यह है भगवान के उपदेश का पुण्य प्रभाव ।
.. भगवान महावीर स्वयं राज कुमार थे। उनके पिता सिद्धार्थ प्रतापी राजा थे। माता त्रिशाला वैशाली के नरेश चेटक की बहन थी। चेटक
.. नरेश की पुत्री का विवाह मगध प्रतापी राजा विम्बसार महावीर का अनुयायी ( श्रेणिक) के साथ हुआ था । राज परिवारों के - नृपति मण्डल सम्बन्ध के कारण भी भगवान् महावीर को अपने धर्म
प्रचार में संभवतः कुछ सहूलियत हुई हो। सगवान् महावीर के उपदेशों से अनेक नृपति प्रभावित हुए। उनके अनुयायी नरेशों -म-वैशाली नरेश चेटक-(जो गणसत्तात्मक राज्य के नायक थे),