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जैन-गौरव-स्मृतियां
और
स्वयं पूर्णतया विरत रहते तो भी कोई महावीर या उनके अनुयायी त्यागी को हिंसाभांगी नहीं कहता । पर वे धर्म के सर्म को पूर्णतया समझते थे इसीसे जयघोष जैसे वीर साधु यज्ञ के महान समारंभ पर विरोध व संकट की परवाह किये विना अपने अहिंसा सिद्धान्त को क्रिया शील व जीवित बनाने जाते हैं । अन्त में उस यज्ञ में मारे जाने वाले पशु को प्राण से तथा मारने वाले याज्ञिक को. हिंसा वृत्ति से बचालेते हैं।"
... आजके युग के महापुरुष महात्मा गांधीजी ने जिन जिनःसाधनों का अवलम्बन लेकर भारत में सफल क्रान्ति पैदा की और आधुनिक विश्व को विस्मय चकित किया उनका मूल स्रोत भगवान् महावीर के . आदर्श जीवन
और सिद्धान्तों में है । अहिंसा और सत्य का सिद्धान्त, अस्पृश्यता निवारण का सिद्धान्त, नारीजागरण, सामाजिक साम्य, ग्राम्यजनों की सुधारण, श्रमिकों का आदर आदि २ कार्यों के लिए महात्माजी ने भगवान् महावीर के सिद्धान्तों से प्रेरणा प्राप्त की है । महात्माजी की इन शिक्षाओं का उदगम भ० महावीर की शिक्षाओं में है। . . . . . ... : भगवान महावीर स्वयं सब प्रकार के दोषों से अतीत हो चुके थे इसलिए उनके उपदेशों का जादू के समान चमत्कारिक प्रभाव होता था।
__जिस व्यक्ति का अन्तः करण पवित्र होता है उसके मुख, उपदेश का प्रभाव से.निकली हुई आवाज श्रोताओं के अन्तः करण को छ
... लेती है.। इसके विपरीत जिस उपदेशक का आचरण अंपने कहने के अनुसार नही होता उसका प्रभाव नहीं सा होता है। यदि हो भी जाता है तो वह क्षणिक ही होता है। भगवान महावीर की वाणी में हृदय की पवित्रता का पुट था. अतः उसका चमक्तारिक प्रभाव पड़ा.। भगवान ने जिस २. क्षेत्र में प्रवेश किया. उसमें सफलता प्राप्त की। उनका सबसे-प्रधान कार्य था. हिंसा: का विरोध । इस दिशा में उन्हें जो सफलता मिली वह इसी बात से प्रकट हो जाती है कि अव हिंसकयों की प्रथा लुप्तली हो गई है । यह भगवान् महावीर का अभूतपूर्व प्रभाव है कि जिन यज्ञों की पूर्णाहुति पशुवध के. बिना नहीं हो सकती थी ऐसे यज्ञ भारत में नामशेष हो गये । इस विषय में आनन्द शंकर भाई ध्रुव लिखते हैं:
ऐतरीय कहा गया है कि सर्वप्रथम पुरुषमेध था, इसके बाद
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