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जैन- गौरव स्मृतियां
★ वृहत् खरतरगच्छ भट्टारक की गादी - बीकानेर
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गणधर श्री सुधस्वामी के ६० वें पाट पर जैनाचार्य श्रीमद जिनचन्द्र सुरीश्वरजी बड़े इतिहास प्रसिद्ध प्रतापी पुरुष हुए हैं। विशेष परिचय इसी ग्रन्थ में "सम्राट अकबर और जैन मुनि" शीर्षक में दिया गया है । ६६ वें पट्टधर जैनाचार्य श्रीमद् जिन हर्ष सूरीश्वर जी हुए। वालेवा गाँव निवासी बोहरा गोत्रिय श्रेष्टि श्री तिलोकचंदजी की भार्या श्री तारादेवी की कुक्षी से आपका जन्म हुआ। मूलनाम हरिचन्द्र था । सं० १८४१ में उगांव में दीक्षा । सं० १६५६ ज्येष्ठ शुक्ला १५ को सूरत बन्दर में सूरी पढ़ | आप सं १८८७ में आषाढ़ शुक्ला २० को शाह अमीचंद द्वारा निर्मापित मंदिर की प्रतिष्ठा हेतु बीकानेर पधारे। तब ही से इस गाढ़ी की, ख्याति विशेष प्रसिद्धि में आई। श्री जिन हंस सूरीजी (७१) श्री जिनचन्द्र सूरीजी ( ७२ ) श्री जिनकीर्ति सूरीजी ( ७३ ) तथा श्री जिनचरित्र सूरीजी ( ७४ ) क्रमशः पाट पर विराजे, आपका भाडपुरा (जोधपुर) निवासी छाजेड गोत्रीय श्रेष्टी पाबूदान जी की भार्या सोनादेवी की कुक्षी से सं० १६४२ वैशाख शुक्ला ८ को जन्म हुआ ! जन्म नाम चुन्नीलाल । दीक्षा सं० १६६२ वैशाख शुक्ला ३ । आचार्य पद १६६७ माह सुद ५ को । आप संस्कृत एवं जैन साहित्य के प्रकान्ड विद्वान् थे । आपने बड़े उपा में प्राचीन हस्त लिखित ग्रन्थों के संग्रह का महत्वपूर्ण कार्य किया । वर्तमान में ७५ चे पाट पर जैनाचार्य श्री मद्- जिन विजयेन्द्र सूरीजी हैं। आपका जन्म भावनगर समीपवर्तीय गांव निवासी गांधी गोत्रीय श्री कल्याण चन्द्रजी के घर सं० १६७१ वैशाख शुक्ला २ को हुआ । मूल नाम विजयचंद्रजी । मालपुरा में सं० १६८७ वैशाख शुक्ता ७ को दीक्षा ग्रहण की। सूरीपढ़ सं० १६६८ माघ शुक्ला १० बीकानेर नगर । आप एक प्रतिभा सम्पन्न विद्वान, साहित्य प्रेमी और राष्ट्रीय गम्भीर विचारक हैं | आपके वर्मोपदेश जैन समाज के गौरव वृद्धि हेतु समाज में समयानुकुल बड़े गम्भीर धार्मिक भाव लिये हुए होते हैं । आपकी आज्ञा में वर्तमान मैं करीब १५० यति समुदाय है ।
★ साहित्य प्रेमी श्री अगरचन्दजी नाहटा, बोकानेर
जन्म वि० सं० १९६० चैतबदी ४ । पिता श्री शंकर दानजी नाहटा कालेज और यूनिटी की शिक्षा प्राप्त न होने पर भी अपने अध्यवसाय द्वारा भाषा वा साहित्य में अच्छी प्रगति की । सं० १९८४ में ख० श्री कृपाचन्दजी म० सा और पूज्य सुखसागरजी म० सा० बीकानेर पधारे। पूज्य महाराज श्री के सत्संगति से आपका हृदय साहित्य के साथ धर्म तथा अध्यात्म जैसे गूढ विपयों की ओर.. आकृष्ट हुआ। आप हिन्दी एवं राजस्थानी भाषाओं के उत्कृष्ट लेखक, संकलन कर्ता एवं सम्पादक हैं | राजस्थानी साहित्य और जैनसाहित्य के सम्बन्ध में आपने अनेक महत्वपूर्ण खोजें की हैं । अ० भा० मारवाड़ी सम्मेलन की सिलहट शाखा के आप