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________________ SSC जैन-गौरव-स्मृतियाँ Sease सेठ माणकचन्द की पत्नी माणिकदेवी की इच्छा से उन्होंने कसौटी पत्थर का भव्य जिनमन्दिर बनवाया था। कहा जाता है कि इस कसौटी पत्थर के संग्रह में इतना मूल्य खर्च करना पड़ा कि शायद सोने और चांदी का मन्दिर तय्यार हो सकता था। गंगा के प्रवाह में यह मन्दिर वह गया है फिर . भी जो अवशेष बचे है वे जगत् सेठ की अमर कीर्ति को घोषित कर रहे हैं। - सरफखां और जगत् सेठ फतेचंदः-मुर्शिदकुलिखां के बाद सरफखां. बंगाल का शासक हुआ । सेठ माणकचंद के बाद सेठ फतेचंद जगत् सेठ की . गादी पर आये । सफरखां ने जगत् सेठ के साथ वैर बांध लिया और बंगाल . की सुख शान्ति को नष्ट कर दिया। यह समय नादिरशाह की लूट का था। सेठ फतेचंद ने अपनी बुद्धिमत्ता से नादिरशाह को प्रसन्न कर बंगाल को . लूट से बचा लिया । सरफखां अपनी उच्छ खल प्रवृत्ति से पदभ्रष्ट कर दिया गया । उनके स्थान पर अलीवर्दीखां शासक हुआ । अलीबर्दीखां के समय में . मरहठों ने बंगाल पर आक्रमण कर दिया । मरहठों ने जगत् सेठं की कोठी को जी भर के लूटा तो भी उसको नैभव ज्यों का त्यों अखण्ड बना रहा.। ... नवाव सिराजुदौला और जगत् सेठ महतावचन्दः-अलीवर्दीखा के । बाद सिराजुदौला. बंगाल का नवाव हुआ और इधर सेठ फतेचंद के पौत्र .. महताबचंद जगत सेठ की गद्दी पर आये । इस समयं दिल्ली के सिंहासन पर अहमदशाह और आदिलशाह थे । अहमदशाह ने सेठ महतावचंद को जगत् सेठ की पदवी से और उनके भाई को 'महाराजा' के पद से सम्मानित किया और सम्मेतशिखर का जैनतीर्थ इन्हे समर्पित किया। सेत महतावचन्द ने उत्तरी और दक्षिणी भारत में बहुत बड़ी व्यापारिक प्रतिष्ठा प्राप्त की। " मीरजाफर के भयंकर विश्वासघात के कारण पलासी के युद्ध में । सिरोजुदौला की पराजय हुई और मीरजाफर नवाव बन गया। इसके शासक होते ही अंग्रेजों की वन आई । इसने अंग्रेजों को टकसाल खोलने का हुक्म - दे दिया । इसी. समय से जगत सेठ का वैभव सूर्य अस्ताचलगामी होने लगा। उक्त वर्णन से स्पष्ट हो जाता है कि अपनी बुद्धि प्रतिभा से तथा व्यापार .. के जरिये जगत् सेठ ने तत्कालीन वातावरण में कितना माहात्म्य प्राप्त कर. : लिया था। जगत् सेठ का इतिहास एक जैनव्यापारी की उज्ज्वल कीर्ति का .. इतिहास है। __भारत के व्यावसायिक जगत् में जैनों का प्राधान्य है। उनका व्यवः । साय किसी एक क्षेत्र में ही सीमित नहीं परन्तु व्यापक है । संसार का ऐसा......
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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