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kyyyyyyजैन गौरव-स्मृलियाँywh
की स्थापना करो तो फिर देखना कि माणकचन्द की शक्ति क्या खेल करके दिखाती है। गंगा के तट पर एक टकसाल स्थापित होगी, अंग्रेज, फ्रेन्च और डच लोग तुम्हारे पैरों के पास खड़े होकर कार्निस करेंगे । दिल्ली का बादशाह तो रुपयों का भूखा है जहाँ हम अभी एक करोड़ तीस लाख भेजते हैं वहाँ दो करोड़ भेजेंगे तो वह समझेगा कि बंगाल की समृद्धि मुर्शिदकुलीखाँ के प्रताप से बढ़ती चली जा रही है। सेठ माणकचन्द ने इस प्रकार मुर्शिदकुलीखाँ को उत्साहित करके अपने अतुलवैभव और गंगा के समान धन के प्रवाह की ताकत से भागीरथी के किनारे मुर्शिदाबाद नामक विशाल नगर की स्थापना की। कुछ ही समय में यह नगर बंगाल की राजधानी के रूप में परिणत होगया । अजीमुश्शान नाममात्र का नवाब का रह गया और सारी सत्ता इन दोनों के हाथ में आगई । इनके सुप्रबन्ध से बंगाल में शान्ति की लहर .. दोड़ गई । इस समय सारे भारत में राज्यक्रान्तियां हो रही थी परन्तु इस सुप्रवन्ध के कारण बंगाल क्रान्ति की चिनगारियों से बचा हुआ था । अंग्रेज . व्यापारी अपनी कूटनीति से कर्नाटक, मद्रास और सूरत में कोठियां स्थापित , कर भूमि पर अधिकार कर रहे थे। परन्तु बंगाल में उनकी दाल नहीं गल है रही थी।
. सहसा भारतवर्ष के राजनैतिक वातावरण में एक प्रबल झों का आया। दिल्ली का सिंहासन फर्क खसियर के हाथ में चला गया। बादशाह फर्रुखशियर एक वार बीमार हो गया । दैवयोग से अंग्रेज कम्पनी का डाक्टर हेमिल्टन .. बादशाह से मिला और उसे स्वस्थ कर दिया। इसके पारितोपिक के रुप में उसने बंगाल की भूमि में गंगा के किनारे कुछ गाँव माँग लिये । मूर्ख फर्म ख.. शियर इतना वेभान हो रहा था कि वह कोरे कागज पर सही करने को तय्यार था ! उसने गंगा के किनारे के चालीस परगने अंग्रेजो को सुपुर्द करने का फरमान मुर्शिवकुलीखां के पास भेज दिया । जब यह फर्मान मुर्शिदकुलीखों और जगत्सेठ के सन्मुख पहुँचा तो उन्हें बंगाल के अन्धकारमय भविष्य के दर्शन होने लगे । मुर्शिदकुलीखां ने साहस पूर्वक बादशाह का . . फरमान वापस लौटा दिया और कहलाया कि बंगाल का दीवान एक इञ्च जमीन भी विदेशियों को मापने से असहमत है। इससे मुख फर्म शियर . मद्ध हो गया और उसने फरमान निकाला, जिसमें मुर्शिदकुलीखों को दीवान . . पद से अलग कर के उसके स्थान पर सेट माणकचंद को दीवान बनाने की चोपणा थी और सेट के वंशजों को जगत् मेंट की पदवी से विभूषित करने