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प्रकाशकीय निवेदन
... .. किसी भी राष्ट्र, समाज या धर्म का गौरव तथा उसकी आत्मा उसके साहित्य में ही व्यक्त होती है । जैन समाज का गौरव उसके ठोस साहित्य, प्राणीमात्र के लिए कल्याणकारी सिद्धांत, सांस्कृतिक उच्चता और उदार भावना वं. कारण ही सुदृढ़ और चिरस्थायी सा अब तक कायम रह सका है।
किन्तु दुर्भाग्यवश जब से हमारे जैनाचार्यों में या जैन समाज में साम्प्रदायिक भावना, स्व प्रतिष्ठा या अपना संगठन बनाने की भावना प्रबलवती हुई उनका ध्यान जैन सिद्धांतों के प्रचार व लोक कल्याण के कार्य से निरन्तर दूर हटता गया और पूर्वाचार्यों द्वारा उपर्जित श्री कीर्ति में वृद्धि के स्थान पर घटती ही हुई व होरही है । मेरे तेरे में भगवान , सिद्धान्त, साहित्य, कलाधाम आदि सभी के टुकड़े २ कर दिये गये और आज उन्हीं टुकडों की रक्षा को "स्वत्व रक्षा" माना जा रहा है । आपसी कलह ने प्रगति के मार्ग में कांटे बिछा रक्खे हैं । - ऐसे समय में यह आवश्यक है कि समाज का ध्यान संकुचित मनोवृत्ति को छोड़ एक्य सूत्र में आध होकर टुकडार में विखरी हुई पूंजी को एक ग्थान पर प्रन्थित करने, अपनी प्रतिष्ठा और साधन सम्पन्नता अनुभव करने की और भी कराया जाय । इस एक स्थान पर एकत्रित सम्पति का स्वरूप इतना विशाल, सुदृढ़ और सुन्दर है कि जिसकी समानता विश्व का कोई भी संगठन या सिद्धान्त नहीं कर सकता । पूर्वजों का गौरव गुम्फित करने की भावना ही इस "जैन गौरव स्मृतियां ग्रन्थ प्रकाशन का मुख्य कारण बना । भावना जगीं और प्रयत्न किया गया। . और यह ग्रन्थ उसी प्रयत्न का फल है। सत्य तो यह है कि जैन समाज का गौरव प्रकट करने के लिये भिन्न २ विपयों पर हजार ग्रन्थ भी प्रकाशित किये जाय तब भी पूर्णता या अन्तिम छोर नहीं पाया जा सकता । यह ग्रन्थ तो संक्षिप्त सूची मात्र ही बन पाया है।
साहित्य सृजन की इस दिशा में एक विशेष सामर्थ्य युक्तसंगठित प्रयत्न की आवश्यकता है । इसके लिये एक शोध खोज तथा एक ऐसे विद्वद् लेखक मंडल के गठन की आवश्यकता है जिनके जीवन का उद्देश्य ही 'जैन गौरव' की खोज व प्रकाशन बनजाय।
समया भाव, आर्थिक कठिनाइयाँ, यथेष्ठ कागज प्राप्ति में दुर्लभता आदि कई कारणों से कई एक प्रकरण हमें प्रकाशन सामग्री से अलग रखने पड़े हैं-लिखी सामग्री में काट छांट करने को बाध्य होना पड़ा है। ग्रन्थ प्रकाशन की अवधि विशेष बढ़ाना उचित नही समझा गया और आज यह ग्रन्थ पाठकों की सेवा में प्रेषित है।
जैसा कि उपर लिखा जा चुका है कि यह ग्रन्थ तो जैन गौरव की एक सूचि मात्र है । इस सूचि के आधार पर गौरव गाथा संग्रहीत करने के लिये विशाल