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Shresente* जैन-गौरव-स्मृतियां *
राजा ने धन की खोज में खुदवा डाला था। जैनस्तूप अथवा जैनाचार्यों की समाधियों का उल्लेख "निसिदिया" शब्द से हाथीगुफा वाले लेख में भी मिलता है। तक्षशिला भी जैनसम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र था । प्राचीन टीका साहित्य में इसे धर्मचक्रभूमि' कहा गया है। तक्षशिला का तीन भिन्न २ स्थानों पर शिलान्यास हुआ है यह सिद्ध है। सिरकपनगर ( तक्षशिला) की खुदाई से जैनमन्दिर और चैत्य के भाग्नावशेष मिले हैं जो बनावट में मथुरा के अर्धचित्रों में अंकित जैनस्तूपों से बहुत मिलती जुलती है इससे वहाँ जैनों का अस्तित्व रहा होगा यह प्रतीत होता है । कनिष्क के समय में पेशावर में भी एक जैनस्तूप था।
गुफाएँ :-धर्मप्राण भारतवर्ष में ऋषि-मुनी और सन्तगण एकान्त शांन्त भूमियों में रह कर आत्म-साधना करते आये हैं । पहाड़ों की नीरव कन्दराओं में उन्हें अलौकिक शान्ति का अनुभव हुआ करता था । अतः भारत के तीनों प्राचीन धर्मों के मुनि वनों में, गुफाओं में और निर्जन प्रदेशों में साधना किया करते थे। तत् तत् धर्मी राजाओं ने अपने २ संत मुनियों के लिये पहाड़ों के नीरव प्रदेशों में गुफाओं का निर्माण कराया था। ये गुफाएँ चित्रकला, स्थापत्यकला, मूर्तिकला, और इतिहास की विविध बातों पर अच्छा प्रकाश डालती है । पुरातत्त्व और इतिहास प्रेमियों के लिये ये प्रचुर सामग्री उपस्थित करती हैं । अजन्ता, एलोरा की गुफाएँ अत्यन्त प्रसिद्ध है । यहाँ कतिपय मुख्य २ जैन गुफाओं का दिग्सूचन किया जाता है:--:.
(१) उड़ीसा प्रान्त की खण्डगिरी अपरनाम उदयगिरि पर अनेक जैनगुफाएँ हैं, जो महामेघवाहन कलिंगचक्रवर्ती सम्राट् ग्वारवेल ने बनवाई हैं। यहाँ की हाथीगुफा से एक शिलालेख प्राप्त हुआ है जिससे खारवेल के जैन होने के और उसके किये हुए अनेक कृत्यों पर प्रकाश पड़ता है। इससे तत्कालीन अनेक ऐतिहासिक तत्त्वों का परिचय मिलता है।
(२) बिहार प्रदेश में वरवरा पहाड़ की कन्दराओं में जो नागाजुन के नाम से प्रसिद्ध है कतिपय जैनगुफाएँ है । वहाँ जैनश्रमण रहा करते थे। इनका विस्तृत वर्णन जैनसत्यप्रकाश मासिक पत्र के वर्ष ३ अंक ३-४-५ में किया गया है। विस्तार भय से यहाँ नहीं दिया जा रहा है।
(३) पाँच पाण्डवों की गुफाएँ-मालव प्रदेश में ये गुफाएँ आई हुई है। इनमें शिल्प और चित्रकला का बहुत सुन्दर काम किया हुया है। Skkkkkka( ५२१) kakakkakeley