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*जैन गौरव-स्मृतियाँ
पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा आकाश में अधर रही हुई है अत: यह अन्तरिक्ष । . पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध तीर्थ है । एलिचपुर के राजा श्रीपाल के शरीर में कुष्ट रोग था वह यहाँ के सरोवर में स्नान करने से दूर हुआ। इस प्रभाव से प्रभावित होकर इसका कारण हूँढते समय यह प्रतिमाजी प्रकट हुई ऐसा कहा जाता है। . राजा इसे अपने नगर ले जा रहा था । पीछे देखने का उसे देवी ने निपेध किया था परन्तु शंका होने से पीछे देखा तो मूर्ति वहीं स्थित हो गई। राजा ने वहां सिरपुर ग्राम बसाया और मन्दिर बनवाकर उसकी प्रतिष्ठा की। यह प्रतिमा पहले अधिक ऊँचे आकाश में अधर थी आजकल तो एक अंगुल अधर रही हुई है । श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों में इस तीर्थ के लिए झगड़ा हुआ था। दोनों इसे अपना २ मानते हैं। दोनों पक्ष के अनुयायी इसकी यात्रा करते हैं। मुक्तागिरिः--
उक्त एलचपुर से १२ मील दूर मुक्तागिरि पहाड़ है। इस पर श्वेत वर्ण जिन मंदिर है। इनमें नकाशी का काम बहुत अच्छा है । इस पर्वत पर से पानी का झरना गिरता है। दृश्य बड़ा मनोहर है। वार्षिक मेला भरता है । पहाड़ पर ४८ मन्दिर हैं जिनमें ५ मृतियाँ है। तीर्थ व्यवस्था दिगम्बर वन्धु करते. हैं । दक्षिण में यह तीर्थ शत्रंजय के समान महत्वपूर्ण माना । जाता है।
भाण्डुकजा में यह बहुत प्रासको प्राचीन भव्यता के नाम से
वरार में यह बहुत प्राचीन तीर्थ है। यहां पहले भद्रावती नामक विशाल नगरी थी। खंडहरों से इसकी प्राचीन भव्यता का अनुमान होता है। यहां के कुण्ड और सरोवरों के नाम जैन तीर्थङ्करों के नाम से अद्यावधि प्रसिद्ध है । इस नगरी का प्राचिन इतिहास उपलब्ध हो तो दक्षिण में जैनधर्म के गौरव का एक उज्जवल पृष्ट मिल सकता है। यहाँ केशरिया पार्श्वनाथजी की श्याम फणधारी याकर्षक और चमत्कारी मूर्ति है । कहा जाता है कि अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ के मुनीम को स्वप्न आने से यह मूर्ति यहाँ से शोध करते हुए प्राप्त हुई है। कुम्भोज तीर्थ:---- . . . यह तीर्थ · कोल्हापुर स्टेट में आया हुआ है पहाड़ी पर जगवल्लभ