SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SheS * जैन-गौरव-स्मृतियाँ eSMS यह नगर उन्नत दशा में था, ऐसा उल्लेख मिलता है । श्री मेन्तुगाचार्य ने विचारश्रेणी में लिखा है कि इस सुवर्णगिरी पर नाहड़ राजा ने महावीर म्वामी का मन्दिर बनवाया था। इस उल्लख के अनुसार सुवर्णगिरी का । महावीर चैत्य १८०० वर्ष प्राचीन है। कुमारपाल राजा ने १२२१ में इस स्वणगिरी पर कुमारविहार मन्दिर बनवाया था और उसमें पार्श्वनाथजी की प्रतिमा स्थापित की थी। संवत् १६८१ में मुणोत जयमलजी ने जोजोधपुर नरेश श्री गजसिंह जी के मंत्री थे, यहां प्रतिष्ठा और पुनरुद्धार करवाया। कोरटा तीर्थः-- . एरनपुरा स्टेशन से १२ मील पर है । इनके चारों तरफ प्राचीन मकानों के खंडहर पड़े हुए हैं । उनसे अनुमान किया जा सकता है कि किसी समय यह एक बड़ा नगर रहा होगा। इसके प्राचीन नाम कोरण्टपुर. कनकापुर, कोरण्टनगर आदि है । अभी यहाँ भगवान महावीर का भव्य मंदिर है। जाकोड़ा, नाकोड़ा, कापरड़ा, स्वयंभू पार्श्वनाथ, फलोधी पार्श्वनाथ, आदि प्रसिद्ध तीर्थ हैं। योसिया:-- यह ओसवालों की उत्पत्ति का मूल स्थान है । राजा उपलदेव नेइस नगरी को बसा था । उसका मत्री उहड़ था। उप नदेव पहले बामवार्गी था परन्तु समर्थ प्राचार्य रत्नप्रभारि के प्रभाव और चमत्कार से प्रभावित होकर यह राजा और यहाँ के नगरनिवासी जैन बन गये थे। उहड ने श्री वीरप्रभु की मूर्ति प्रतिष्टापित करवाई । यह प्राचीन भव्य मन्दिर दर्शनीय है। सिरोही यहाँ तीर्थतुल्य १७ जिनालय हैं । इनमें से १५ मन्दिर तो एक ही पंक्ति में एक ही पाये पर राज महलों के निकट स्थित हैं। एक मन्दिर में राजरानियों के पाने का गुण मार्ग भी है। मुख्य मन्दिरों के नामः१. आंचलिया आदिश्वरजी का मन्दिर (सं० १३३६ में प्रतिष्ठिति )
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy