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जैन-गौरव-स्मृतियां
बारवी मल्लक, प्रश्नोत्तरशतक शृगारशतक, स्वप्नाष्टक विचार, चित्रकाव्य, अजित या प्रमान्तिस्तव, भावारिवारणस्तोत्र, जिनकल्याणक स्तोत्र, वीरस्तव आदि लगभग ‘वान स्तिोत्र, प्रशस्तियाँ आदि । इनका स्वर्गवास ११६७ हुआ ।
में जिनदत्तसूरिः-ये जिनवल्लभ सूरि के शिष्य और पट्टधर थे । इन्होंने "निक क्षत्रियों को प्रतिबोध देकर जैनधर्मानुयायी बनाये। ये खरतरगच्छ
प्रभावक श्राचार्य हुए। ये "दादा गुरु" के नाम से विशेष प्रसिद्ध है। ". जमेर में इनका स्वर्गवास हुआ । स्थानीय दादावाड़ी इन्हीं का मारक है। ..नके बनाये हुए ग्रन्थ इस प्रकार हैं:-गणधरमार्धशतक, गणधर सप्तति, नागपालस्वम्प कुलक, विशिका, चर्चरी, सन्देहदोलावलि, सुगुम्पारतन्य, सिंघाधिष्ठायिस्तोत्र, विश्नविनाशिस्तोत्र, अवस्थाकुलक, चैत्यवन्दनकुलक, ... नौर उपदेशरसायन। .
जिनभद्रसूरि- ये भी जिनवल्लभसरि के शिष्य थे । इन्होंने 'अपवर्गबनाममाला' कोप की रचना की। . रवृहद्गच्छीय हेमचचन्द्रः
इन प्राचार्य ने नाभेयनेमि द्विसंधान काव्य की रचना की । यह अपभदेव और नेमिनाथ दोनों को समानरूप से लागू होता है अतः द्विसंधान काव्य कहा जाता है। देवभद्रसूरि-ये नवाँगी टीकाकार अभयदेव के शिष्य थे । इन्होंने श्राराहणासत्य, वीरचरियं, कहारयण कोस, पार्श्वनाथ
वरित्र की रचना की। ही मुनि चन्द्रमुरि:-ये वृहदगच्छ के यशोभद्र और नेमिचद्र के शिष्य माये । ये बड़े तपस्वी थे और सौवीर (काजी) पीवार रहे जाते इसलिए 'सौवारपायी' भाभी को जाने हैं। इनकी शाला में पांच सौ श्रमग थे। इन्होंने निम्न अन्य
और टीकाणं लिखा है । सुमार्थसार्धशतक चर्गि सन्माविचारमार गिरी, प्रावश्यकमातनि... क्रमप्रनिनिष्पन, अनेकान्नजयपताकावृत्ति टिपन, पागधकाव्य पर टीका. देवेन्द्रनरेन्द्रप्रकरण पर वृत्ति, उपदेशपद का टिपन,
ललितविग्नरा की पत्रिका, धनविन की पृनि, अंगुन साति, वनस्पतिसमाप्रति. गाथाकोश, अनुशामनामुश, कुलक. उपशामत फल, प्राभातिक.