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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ
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३ संस्कृत साहित्य का उत्तीर्ष तथा अपभ्रश का उदय
(विक्रम संवत् १००१ से १७०० तक) विक्रम'की ग्यारहवीं शताब्दी से पहले २ प्राकृत भाषा का प्राधान्य रहा। विक्रमी के पाँचवीं शताब्दी तक तो प्रायः प्राकृत में जैनसाहित्य रचा ." जाता रहा । उसके बाद संस्कृत भाषा का उदय होने लगा। पाँचवीं सदी से दसवीं सदी तक प्राकृत और संस्कृत दोनों में साहित्य रचना होती रही। इस .. युग में जैनतर्कशास्त्र का प्रणयन और प्रतिष्ठापन हुआ अतः संस्कृत भाषा को प्रोत्साहन मिलता रहा । ग्यारहवीं शताब्दी से संस्कृत साहित्य का उत्कर्ष होने लगा । अबतक की भाषा सरल और स्वाभाविक थी परन्तु त्यों त्यों संस्कृत. सापा दुरूह और अलंकारमय होती गई। लम्बे २ समास वाली भाषा लिखना पांडित्य का मूलक समझा जाने लगा । दसवी सदी की पूर्णाहुति तक प्रायः जैनागम और प्रमाण शास्त्र पर ही अधिक रूपों से ग्रन्थ लिखे जाते रहे परन्तु इसके बाद तर्क, काव्य कोप, वैद्यक, ज्योतिष, नीति, . व्याकरण अदि सर्वाङ्गीण साहित्य की रचना हुई । अत्यन्त संक्षेप में मुख्य २ . साहित्य और साहित्यकार का यहाँ उल्लेख किया जाता है :---: ... तर्कपञ्चानन अभयदेव सूरि :--
ये प्रद्युम्नसूरि के जो वैदिक शास्त्रों के पारगामी और वाद-कुशल थे। शिप्य थे । अभय देव सूरि को न्यायवनसिंह और तर्कपञ्चानन की उपाधि प्राप्त थी । इन्होंने सिद्धसेन दिवाकर के सन्मति तर्क पर पञ्चीस हजार श्लोक प्रमाण वादमहार्णव नाम से विस्तृत टीका लिखी है। इसमें इन महान दार्शनिक ने दसवीं शताब्दी तक के प्रचलित सब पक्ष प्रतिपक्षों और . मतमतान्तरों का उल्लेख करके अनेकान्त की स्थापना की है। यह टीका अत्यन्त विस्तृत होने से इसे इससे पूर्ववर्ती सकल दार्शनिक ग्रन्थों का संदोहन कह सकते हैं। इन आचार्य का समय १०५४ से पूर्व ही सिद्ध होता है। प्रभाचन्द्र
आपने प्रमाण शास्त्र पर सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' लिखा। ये दिगम्बर परम्परा के आचार्य हुए हैं । आपने आचार्य अकलंक की कृतियों का