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* जैन-गौरव-स्मृतियां
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२ इन्हें देवर्धिगणि के समाकालीन मानते हैं। पं० सुखलालजी ने इन्हीं सिद्धसेन को गन्धहस्ति' पद विभूषित सिद्ध किया है। .. जिनदास महत्तरः--
ये आचार्य आगमों पर चूर्णि लिखने वाले प्रसिद्ध चूर्णिकार हुए हैं । इन्होंने शक सं० ५६८ अर्थात् वि० सं ७३३ में नन्दीसूत्र. निशीथसूत्र, तथा अनुयोगद्वार सूत्र पर चूर्णि की रचना की है। समन्तभद्रः-- . .
ये आचार्य दिगम्बर सम्प्रदाय में अनन्त प्रभावशाली हुए हैं। ये सिद्धसेन दिवाकर की तुलना के आचार्य हैं । सिद्धसेन के सम्बन्ध में लिखते हुए इनके विषय में पहले लिखा जा चुका है। इन्होने आप्तमीमांसा, युकत्यनुशासन, रत्नकांडश्रावकाचार और स्वयंभू स्तोत्र की रचना की है । इन ग्रंथ रत्नों को देखने से इनकी अनुपम प्रतिभा का परिचय मिलता है। ये स्याद्वाद के प्रतिष्ठायक आचार्य हैं । अनेक युक्तियों के द्वारा इन्होंने अन्यवादियों के सिद्धांतों का खण्डन कर अनेकान्त का युक्तिपूर्वक मंडन किया है। इनकी सर्व श्रेष्ठ कृति आप्तमीमांसा है । 'हम अर्हन्त की ही स्तुति क्यों करते हैं, दूसरे की क्यों नहीं करते ? इस प्रश्न को लेकर उन्होंने आप्त की मीमांसा की है। इन्होंने वाह्य आडम्बर या ऋद्धि को आप्त की कसौटी न मान कर जिसके मोहादि दोषों का सर्वथा अभाव होगया हो और जो सर्वज्ञ हो गया हो वही आप्त है, यह बड़े अनूठे ढंग से प्ररूपित किया है। इनके समय के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं हो पाया है । ये जैनधर्म और जैनसाहित्य के उज्ज्वल रत्न हैं।
आचार्य हरिभद्र ...
(महान् सुधारक और साहित्यकार ) .. ... आचार्य हरिभद्रसूरि जैनधर्म के इतिहास और साहित्य में एक नवीन युग के पुरस्कर्ता हैं । ये न केवल प्रथम पंक्ति के साहित्यकार ही थे अपितु एक प्रवल धर्मोद्धारक भी थे। इनके समय में चैत्यवास की जड़ खूब गहरी जम चुकी थी। जैनमुनियों का शुद्ध आचार शिथिल हो गया था उस स्थिति में सुधार करने के लिये ही हरिभद्रसूरि जैसे महाप्रभावशाली आचार्य का प्रादुर्भाव हुआ। शिथिलाचार के विरुद्ध इन आचार्य ने तीव्र आन्दोलन किया
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