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या
जैन-गौरव-स्मृतियां
जिनभद्र क्षमाश्रमणःE . ये आचार्य 'भाष्यकार' के रूप में अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन्होंने विशे
पावश्यक भाष्य की रचना की और उस पर टीका भी लिखी है। यह भाष्य = ग्रन्थ जैनप्रवचन में मुकुट-मणि के समान माना जाता है। इन्होंने आगमिक परम्परा पर दृढ़ रहकर भाष्य की रचना की है। आगमों की बातों को तर्क
और युक्ति के आधार से सिद्ध करने का सर्वप्रथम प्रयास इन्हीं आचार्य ने किया है । आगम परम्परा के महान संरक्षक होने से ये जैनवाड मय में
आगमवादी या सिद्धांतवादी की पदवी से विभूपित और विख्यात है। ये - आचार्य जैनागमों के रहस्य के अद्वितीय ज्ञाता माने जाते थे। इनको "युग
प्रधान" का सन्माननीय पद प्राप्त था।
- ..... जीतकल्पसूत्र वृहत्संग्रहणी, व्रत्क्षेत्रसमास और विशेषणवती नामक .: ग्रन्थ भी इन्हीं आचार्य के द्वारा रचे गये हैं। जैन पट्टावली के आधार
इनका समय वीर नि० सं०.११४५ ( विक्रम सं० ६७५) माना जाता है । यह तो .. निश्चित है कि ये हरिभद्रसूरि के पहले हुए है क्योंकि हरिभद्र ने इनका उल्लेख , किया है। जिनभद्र क्षमाश्रमण का जैनशास्त्रकारों में अग्रगण्य स्थान है।
.. मानतुगाचार्य:--. .. ये आचार्य थाणेश्वर के राजा हर्ष के समकालीन हैं। इतिहासवेत्ता
गौ० ही० ओझा ने राजपताने का इतिहास नामक ग्रन्थ के प्रथमभाग. पृष्ट १४२ पर लिखा है कि-"हर्ष का राज्याभिषेक वि० सं०६६४ में हुआ। वह महाप्रतापी और विद्वत्प्रेमी था । उसके समय में प्रसिद्ध कादम्बरीकार वाणभट्ट हुए । जिन्होंने हर्षचरित भी रचा है तथा सूर्यशतक के कर्ता मयूर आदि
उसके दरवार के पंडित थे। जैनविद्वान मानतुंगाचा ( भक्तामरस्तोत्र के . . कत्ता ) भी उस राजा के समय में हुए ऐसा कथन मिलता हैं" इन प्राचार्य ने
जनियों के प्रिय ग्रन्थ भक्तामरस्तोत्र की रचना की। कोट्याचार्य इन्होंने विशेषावश्यक भाष्य पर टीका की रचना की है। .
सिद्धसेनगणी-- .
... ये आचार्य सिंहगणी (सिंहसूर ) के प्रशिष्य और भास्वामि के शिष्य .. थे । इन्होंने तत्त्वार्थ सूत्र पर टीका रची। ये आगम प्रधान विद्वान थे। कोई