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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ
जहाँगीर वादशाह और जिनचन्द्रसूरिः,
संवत् १६६६ के जहाँगीर बादशाह ने ऐसा हुक्म निकाल दिया था कि सव धर्मों के साधु देश से बाहर चले जाँय । इससे जैनमुनिमण्डल में भी भीति फैल गई। तब जिनचन्द्र सूरि ने पाटन से आगरा आकर बादशाह को समझाया और इस हुक्म को रद्द करवाया। .
शाहजहाँ और शान्तिदास सेठः
सेठ शान्तिदास एक राजमान्य जौहरी और प्रतिष्ठित श्रीमंत व्यापारी थे। इनकी कई पेढियाँ सूरत आदि बड़े २ शहरों में चलती थी। ये ओस.वाल जैन थे। जहाँगीर के राज्य में सं० १६७८ में बीबीपुर में चिन्तामणि पार्श्वनाथ का सुन्दर भव्य मन्दिर बनवाना आरम्म किया। सं० १६८२ में मुक्तिसागर मुनी के हाथ से प्रतिष्ठा कराई गई । यह स्थापत्य का एक उच्च कोटि का नमूना था। जब ओरंगजेब को अहमदाबाद की सूबागिरी मिली तब उसने मन्दिर को बहुत क्षति पहुँचाई और उसे मस्जिद का रूप दे दिया । शान्तिदास ने शाहजहाँ से प्रार्थना की । उसने शहाजदा दाराशिकोह के हाथ का फरमान ( सं० १७७१, हीजरी १०५८ ) भेजा जिसमें लिखा गया था कि मन्दिर शान्तिदास को सौंपो । मस्जिद की आकृति निकाल डालो। उसमें से जो सामान निकाला गया है वह वापस कर दो।" इन्हीं शान्तिदास सेठ के वंशजों के हाथ में अहमदाबाद की नगर शेठाई चली आ रही है। एक ऐतिहासिक कुटुम्ब के रुप में गुजरात के इतिहास में शान्तिदास के कुटुम्ब का बहुत ऊँचा स्थान है।
मुरादवक्ष और वादशाह औरंगजेब ने शान्तिदास को शत्रुन्जय का प्रदेश उसकी दो लाख की आय के साथ पुरस्कार में दिया। इसी तरह अहमदशाह ने पारसनाथ पर्वत जगत सेठ महताबराय और इनके वंशजों को दे दिया जिससे जैन निर्विघ्न रूप से वहाँ की यात्रा कर सकें। ..
श्री उ. दो. बोरदिया ने History and Litrature of Jainism में पृष्ठ ७५ पर लिखा है कि अलाउद्दीन खिलजी ने जैनकवि रामचन्द्र सूरि को १०.KKKe Kokakakak ( ३८४) Kakakakakaksksks