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Se * जैन-गौरव-स्मृतियाँ
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'युगप्रधान' जिनचन्द्र सूरिः
. . बीकानेर के सुप्रसिद्ध मंत्री कर्मचन्दजी बच्छावत अकबर के दरबार ... मैं रहा करते थे। इनके सम्पर्क के कारण अकबर को खरतरगच्छं के प्रसिद्ध
आचार्य श्री जिन चन्द्रसूरि के दर्शन और उनसे वार्तालाप करने की इच्छा हुई : बादशाह के आग्रह से कर्मचन्दजी आचार्य श्री की सेवा में गये और उन्हें लाहौर पधारकर बादशाह को प्रबोध देने की प्रार्थना की। जीवदया
और शासन की नभावना का कारण समझ कर आचार्य श्री लाहौर आये। बादशाह अकबर ने आपका बहुत सम्मान और स्वागत किया । बादशाह के आग्रह से आपने लाहौर में ही चतुर्मास किया । आचार्य श्री का अकवर पर गहरा प्रभाव पड़ा । आचार्य श्री के कहने से उसने द्वारका और शत्रुञ्जय
आदि सब जैनतीर्थों की व्यवस्था कर्मचन्दजी बच्छावत को सौंप दी और उसका लिखित फरमान आजमखाँ को दिया और कहा कि सब जैनतीर्थ • कर्मचन्द जी को सौंप दिये हैं; उनकी रक्षा करो। इससे शत्रुञ्जय पर नवरंगखान ने जो भंग किया था उसका निवारण हुआ। अकबर जब काश्मीर जाने लगा तब उसने आचार्य श्री का 'धर्मलाभ' लिया । इसकी स्मृति में
आपाढ़ शुक्ला से लेकर सात दिन पर्यन्त सारे साम्राज्य में जीवहिंसा न करने के फरमान निकाल कर ग्यारह सूबों में भेज दिये । सम्राट अकबर की इस अमारि घोषणा से उसके अधीनस्थ राजाओं ने भी अपनी २ सीमा में किसी ने पन्द्रह दिन, किसी ने २० दिन और किसी ने महीने दो महीने के लिए आमारिघोप करवाया। वादशाह के आग्रह से आचार्य श्री के शिष्य मानसिंह काश्मीर पधारे । वहाँ अनेक सरोवरों के जलचर प्राणियों को अभदान दिलवाया।
संवत् १६४६ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को अकबर ने जिनचन्द्रसरि को 'युगप्रधान' की पदवी प्रदान कर सम्मानित किया और उनके शिष्य मानसिंहसूरि को आचार्य पद प्रदान कर 'जिनसिंह सूरि' नाम से सम्बोधित किया। इस प्रकार अकवर, पर इन आचार्य श्री का भी गहरा प्रभाव पड़ा था। .
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