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जैन-गौरव-स्मृतियाँ Scies
.... धार्मिक तत्त्वों पर स्वतंत्र रूप से चर्चा और विचार हो सके इसके "लिए अकबर ने फतहपुर सीकरी में इबादतखाना ( प्रार्थनागृह ) की स्थापना की थी। इस स्थान पर विविध धर्मों के प्रतिनिधि विचार विमर्श करते थे । जैनमुनियों को अत्यन्त आदर पूर्वक निमंत्रित करके अकबर ने उनके साथ धार्मिक चर्चा की थी। और कई मुनियों को अपने दरबार के प्रतिष्ठित विद्वानों में सर्वोच्च स्थान दिया था। प्रसिद्ध इतिहास लेखक वि० स्मिथ ने लिखा है कि-"अकबर पर सब धर्मों की अपेक्षा जैनधर्म का और जरथोस्ती धर्म का अधिक प्रभाव पड़ा था।"
वि. स्मिथ अपने 'Akbar' (अकबर ) नामक ग्रन्थ में पोर्तुगीज पादरी पिन्हेरो ( Pinheiro) का ता. ३-७-१५६५ का पत्र उद्धृत किया है, इसमें बताया गया कि "He follows tbe seet of the Jains ( Veritie ) अर्थात् अकबर जैनधर्म का और उसके व्रतों का पालन करता है।" इसके बाद कई जैनसिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है । अकबर ने जैनधर्म में से प्राणी वध का त्याग, मांसाहार का त्याग, पुनर्जन्म की मान्यता, कर्मसिद्धान्त आदि को अपनाया था और उसने जैनाचार्यों का सन्मान करके उनके तीर्थस्थानों को उनके अधीन कर दिये थे तथा उनके उपदेश के जीवरक्षा के फरमान जारी किये थे। ' सम्राट अकबर पर जैनधर्म की जो अमिट छाप पड़ी इसका सारा श्रेय सुप्रसिद्ध जैनाचार्य श्री हीरविजय सूरि और उनके विद्वान् शिष्यों
श्री हीरविजय सूरि और अकबर
श्री हीरविजय सूरि जैनशासन के महा प्रभावक, अद्वितीय विद्वान् और परम प्रतापी आचार्य हुए हैं। आपने अपनी दिव्य प्रतिभा से अकवर और अन्य राजाओं पर अपना अखण्ड प्रभाव स्थापित किया था । आपने अपने महान् प्रताप से जैनशासन का उद्योत किया था। ... आचार्य श्री हरिविजयसूरि की विद्वत्ता और प्रतिभा की कीर्ति दर २ तक फैल चुकी थी। ऐसे समय में वादशाह अकबर ने फतहपुर सीकरी में : kekkkkkkkake (३७६) kkkkkkkkkkkkke