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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ
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‘मंत्रीश्वर मेहता करमचंदजी बच्छावत
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बीकानेर की दीवान गिरी करीब २०० वर्ष तक बच्छावत वंशपरम्परा के हाथ में रही। नगराजजी के बाद संग्रामसिंहजी और उसके बाद राव रायसिंहजी के समय में संग्रामसिंहजी के पुत्र महता कर्मचन्दजी मंत्री बनाये गये।
इतिहास में महता कर्म चन्द जी बच्छावत राजनैतिक और सैनिक दृष्टि से अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। तत्कालीन दिल्ली सम्राट अकबर पर आपका
वड़ा प्रभाव पड़ा । सम्राट के आप प्रमुख परामशदाताओं में से थे । जीवन का अन्तिम समय आपने दिल्ली में ही विताया । इसका कारण यह था कि महाराजा रायसिंह की प्रकृति बड़ी उड़ाऊ थी अतः इनके अनबन हो गई थी। अविवेकी रायसिंहजी ने इनके परिवार के साथं भयंकर धोखा किया था। वह इस वंश को ही मिटा देना चाहते थे। ..
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...... मंत्रीश्वर करमचन्दजी बड़े धार्मिष्ठ थे । आपने ही सुप्रसिद्ध जैनाचार्य
श्री जिनचन्द्र सूरी का सम्राट अकबर को परिचय कराया जिस पर से सम्राट अकबर ने आचार्य श्री को विशेष निमंत्रण भेजा था और लाहौर में दोनों की ऐतिहासिक भेंट हुई। आचार्य श्री के उपदेश से प्रभावित होकर उसने सारे राज्य में जैनियों के मुख्य २ पर्यों पर जीवहिंसा न करने का फरमान . जारी किया .!
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