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जै न-गौरव-स्मृतियाँ
निकले । एक बार शाहपुरा नरेश ने विद्रोह किया और जहाजपुर जिल दवा लिया । इस पर मेहता जी को शाहपुरा पर आक्रमण करना पड़ा। बड़ी घमासान लड़ाई हुई और अन्त में मेहता जी की विजय हुई । जहाजपुर उदयपुर में मिला लिया गया। इस लड़ाई में मेहता जी की शारीरिक अवस्था बिगड़ गई । उनके शरीर में कई गहरे घाव लगे थे। अन्त में ' संवत् १८५७ में आप स्वर्गवासी हो गये। . . . . .
मेहता अगरचन्द्र जी एक कुशल राजनीतिज्ञ, रणकुशल और स्वामीभक्त व्यक्ति हुए । मेवाड़ रक्षा और विस्तार में इनका जो हाथ रहा है वह उक्त पंक्तियों से स्पष्ट ही हैं।
महाराणा भीमसिंहजी के समय में आप प्रधान थे। आपने मेवाड़ की भलाई के लिए भिन्न २ छोटी २ जागीरों के सरदारों में पड़ी हुई फूट
को मिटा कर एकता स्थापित की। जयपुर, जोधपुर आदि - सोमचन्द गांधी से मेलकर मरहठों के विरुद्ध एक मजबूत मोर्चा कायम :
किया और संवत् . १८४४ में जयपुर और जोधपुर की सेना द्वारा मरहठों को पराजित किया। गांधीजी ने इसी अवसर पर मेहता मालदास जी को कोटा और मेवाड़ का संयुक्त सेनापति बनाकर मरहठों पर हमला करने भेजा.। .. - मेहता मालदास जी ओसवाल समाज के शिशोदिया गोत्रीय मेहता थे । सेनापति बनकर आपने निकूम्ब, निम्बाहेड़ाः आदि स्थानों पर अपना
अधिकार किया । जव आप जावद पहुँचे तो मरहठों से जोरसेनापति मेहता दार मुकाबला करना पड़ा । विजय मालदास जी की ही रही __ मालदास और मरहठे मेवाड़ को छोड़कर भाग गये। ..
. संवत १८४४ में महारानी अहल्याबाई की सिन्धिया सेना ने फिर मेवाड़ पर हमला किया तब मन्दसौर के हर्कियाखाल पर फिर मेवाड़ी और मरहठी सेनाओं की मुठभेड़ हुई । इस युद्ध में मेहता मालदासजी वीरगति को प्राप्त हुए।
- महाराणा भीमसिंह जी के समय में मेहता देवीचन्दजी एक वाभिमानी और देश की रक्षा करने वाले हितेपी प्रधान हुए। आपके समय । karanatakakNS: (३६६) kakkaskileakinite
शेजा । .
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