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जैग-गौरव-स्मृतियाँ RSSlise
.: मेहता अगरचन्दजीः
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संवत् १७६२ में जव मेवाड़ के राजसिंहासन पर महाराणा अरिसिंह आरूढ हुए तब भारत में सर्वत्र अराकता फैली हुई थी ।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद यवनों का जोर कमजोर हो गया । दक्षिण में मरहठे जोर पड़कने लगे और जगह २ लूटमार करने लगे । अन्य हिन्दु राजा अपना २ राज्य बढ़ाने की चिन्ता में थे। राजपूताने के राजाओं में फूट थी। .
महाराणा अरिसिंह की तेज प्रकृति के कारण मेवाड़ के कई बड़े २ सरदार राणाजी से असंतुष्ट थे । इन्हीं असंतुष्ट सरदारों ने
सिन्धिया को मेवाड़ पर आक्रमण करने का निमंत्रण भेजा और स्वयं ने भी उसका साथ दिया । परिणाम यह हुआ कि महाराणा को सिन्धिया से समझौता करना पड़ा और ६४ लाख रुपया देना निश्चित हुआ, जिनमें से ३३ लाख तो दे दिये गये और वाकी के लिए नीमच, निम्बाहेड़ा आदि का क्षेत्र रहन रखदिया गया। ऐसी कठिन परिस्थिति में मेहता अगरचन्द जी महाराणा अरिसिंह जी के दीवान वनाये गये । मेहता. जी बड़े बुद्धिमान थे। वैसे ही रणकौशल में भी सिद्धहस्त थे । उन्होंने मेवाड़ की तत्कालीन गिरती हुई परिस्थिति को बड़ी सावधानी से सम्भाला और मेवाड़ में पुनः शान्ति स्थापित की। माण्डलगढ़ पर विद्रोही सरदारों का कब्जा था अतः मेहता जी ने उनके साथ युद्ध करके माण्डलगढ़ को मेवाड़ में मिलाया । महाराणा जी ने मेहताजी · को वहाँ का शासक बनाया और हमेशा के लिए वह उन्हें जागीर के रूप
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में सौंप दिया।
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इसके बाद एकबार फिर सिन्धिया ने मेवाड़ पर आक्रमण किया और मेहता.जी कैद करलिये गये, तब भी आप बड़ी चतुराई से भाग
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