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जैन-गौरव-स्मृतियां
राणाओं के दीवान-पद् को. अलंकृत करते रहे । भामाशाह की कीर्ति सदों अमर बनी रहेगी।
संघवी दयालदास बड़े रणकुशल और राजनीतिज्ञ थे । ये महाराणा राजसिंह के दीवान थे। यह समय वह था जब औरंगजेब के अत्याचार से त्राहि . ।
त्राहि मची हुई थी। तलवार के बल मुसलमान बनाये जाते थे • संघवी दयालदास और हिन्दुओं को बहुत ही मुसीवतों का सामना करना पड़ता
था । हिन्दुसंस्कृति और महिलाओं के सतीत्व पर आक्रमण हुआ करते थे। औरंगजेब ने हिन्दुओं पर जजिया कर लगाने का विचार किया जिससे चारों तरफ असंतोष की ज्वाला धधक उठी । महाराणा राजसिंह ने
औरंगजेब को एक पत्र लिखा और उसे ऐसा न करने की सूचना की। इस पर वह क्रुद्ध हो उठा और उसने संवत् १७३६ में मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए विशाल सेना भेजी। राणा राजसिंह ने बड़ी वीरता से इस आक्रमण का मुकावला किया। इस युद्ध में संघवी दयालदास ने बहुत रणकुशलता और वीरता बतलाई। महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब की सेना को परास्त कर दिया । राणाजी ने इस आक्रमण का बदला लेने के लिए संघवी दयालदास को एक बड़ी.फौज देकर मालवे पर चढ़ाई करने भेजा । मालवा उस समय यवनों के अधिकार में था । इस चढ़ाई के सम्बन्ध में कर्नल जेम्स टॉड ने जो वर्णन.लिखा है वह बड़ा ही सुन्दर है अतः हम उसे ज्यों का त्यों उद्धृत करते हैं :
राणा जी के दयालदास नामक एक अत्यन्तसाहसी और कार्य चतुर दीवान थे। मुगलों से बदला लेने की प्यास उनके हृदय में सर्वदा प्रज्वलित रहती थी। उन्होंने शीघ्र चलने वाली घुड़सवार सेना को साथ लेकर नर्मदा और वेतवा नदी तक फैले हुए मालवा राज्य को लूट लिया। उनकी प्रचण्ड भुजाओं के बल के सामने कोई भी खड़ा नही रह सकता था। सारंगपुर, देवास, सिंरोज, मांडू, उज्जैन और चन्देरी इन सब नगरों को उन्होंने अपने बाहुवल से जीत लिया . ! विजयी दयालदास ने इन नगरों को लूटकर वहाँ जितनी यवन सेना थी, उसमें से बहुतसों को मार डाला । इस प्रकार बहुत से नगर और गाँव इनके हाथ से उजाड़े गये । इनके भय से नगर निवासी यवन इतने व्याकुल हो गये थे कि किसी को भी अपने बन्धु वान्धव के प्रति प्रेम न रहा, अधिक क्या कहें, वे लोग अपनी प्यारी स्त्री