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________________ releजैन-गौरव-स्मृतियां इसकी विमल कीर्ति नष्ट हो जायगी । अतः यह विचार छोड़ दीजिए और देश को पुनः स्वतंत्र बनाइये।" राणा प्रताप गद्गद् हो उठे। वे कुछ भी न बोल सके । महाराणा का क्षात्रतेज पुनः चसक उठा । उन्होंने सेना एकत्रित कर मातृभूमि को स्वतंत्र करने की बढ़ प्रतिज्ञा कर ली। प्रसिद्ध इतिहास लेखक कर्नल टॉड ने लिखा है कि "मंत्रीश्वर भामाशाह के द्वारा. राणाजी को अर्पित किया गया वह धन इतना था कि उससे २५ हजार सैनिकों का १२ वर्षों तक पूरा खर्च चलाया जा सकता था।" महाराणाजी ने इस महान सहायता के बल पर मुगलों पर आक्रमण कर दिया और मेवाड़ भूमिके अधिकांश भाग को अपने आधीन कर लिया। एक बार फिर मेवाड़ पर राणा प्रताप की विजय पताका फहरा उठी। दानवीर भामाशाह के सर्वस्व त्याग ने मेवाड़ देश के गौरव को अखण्ड वनाये रखा। : केवल मेवाड़ के इतिहास में ही नहीं वरन् भारतवर्ष के इतिहास में महाराणा प्रताप और दानवीर भामाशाह के उज्ज्वल चरित्र सदा अमर रहेंगे। इनकी गौरव गाथाओं के विना भारत का इतिहास अपूर्ण ही रहता है। मेवाड़ के महाराणा आज तक ओसवाल जैनकुल भूपण भामाशाह के वंशजों का उपकार मानकर पूर्ण सन्मान प्रदान करते हैं । भामाशाह के वंशजो को आज भी राज्य और जातान्यात में पूरा २ सन्मान प्राप्त है। सबसे पहिले तिलक भामाशाह के वंशजों के ही होता है। दानवीर भामाशाह महाराणा प्रताप के शुरु समय से, महाराणा अमर. सिंह के राज्यकाल में ३ वर्ष तक दीवान के सर्वोच्च पद पर आसीन रहे। अंत में यह महान आत्मा संवत् १६५६ माघ शुक्ला एकादशी को ५१ वर्ष की अवस्था में स्वर्ग सिधारी । भामाशाह के भाई वाराचन्द जी भी बड़े वीर हुए हैं। हल्दीघाटी के युद्ध में इन्होंने जो जौहर बताये वे इतिहास प्रसिद्ध हैं। भामाशाह के पुत्र जीवाशाह और उनके पुत्र अक्षयराज भी बाद के
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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