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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ **See सम्भव है यह कुछ काव्यमय अलंकारिक वर्णन हो परन्तु इसपर से उसके महादानी होने की कल्पना सहज ही दिमाग में आसकती है। तेजपाल के पुत्र लणसिंह और स्त्री अनुपमा देवी के स्मरणार्थ आबू के पहाड़ पर देलवाड़ा ग्राम में विमलवसहि के पास उसके ही समान भव्य, कलामय और विस्मय उत्पन्न करने वाला लूणवसहि नामक .. लूणवसहि , नेमिनाथ भगवान् का सुन्दर मन्दिर बनवाया । इस मन्दिर के गूढमण्डप के मुख्य द्वार के बाहर नौ चौकियों में दरवाजे के दोनों तरफ उत्तम पच्चीकारी के कलात्मक दो गवाक्ष (गोखड़े ) अपनी .. दूसरी स्त्री सुहडा देवी के स्मरणार्थ बनवाये । तथा अपने अन्य कुटुम्बी जनों - के स्मरणार्थ वहाँ अनेक छोटे-बड़े मन्दिर आदि का निर्माण किया । वस्तुपाल के लीलादेवी और वेजलदेवी का नाम की दो पत्नियाँ थी। अपने सर्व .. कुटुम्ब की स्मृति के रूप में इन युगल-बन्धुओं ने करोड़ों रूपये खर्च करके आबू के श्रष्ठतम मन्दिरों का निर्माण कराकर शिल्प-कला को नवजीवन प्रदान .. किया। इन मन्दिरों की अद्भुत रचना देख देख कर देश-विदेश के लोग , चकित से रह जाते हैं। ये भव्य मन्दिर इनके निर्माताओं के अपरिमित ऐश्वर्यः । महान् औदार्य विराट धर्मश्रद्धा एवं कलाप्रेम के अमर प्रतीक है। लक्ष्मी, सरस्वती और शक्ति का एक साथ पाया जाना सचमुच ही। आश्चर्य का विषय है। इनका एक व्यक्ति में पायाजाना अतिदुर्लभ है। तदपि वस्तुपाल. में इन तीनों का अद्भुत सामञ्जस्य था। वस्तुपाल का- वे वीर-योद्धा निपुण राजनीतिज्ञ, और अपरिमित लक्ष्मी विद्या मण्डल:- के स्वामी होने के साथ-साथ परम विद्वान् और महाकवि . थे । इनका बनाया हुआ नरनारायणान्द महाकव्य महाकवि माघ के शिशुपालवध से ससानता करने वाला है । सूक्तियों की रचना में इन्हें गजब की शक्ति और प्रतिभा प्राप्त थी । एक समकालीन कवि ने इन्हें 'कुर्चालसरस्वती' (दाढ़ीवाली सरस्वती) की उपमा प्रदान की हैं। एक दूसरे कवि ने उन्हें 'सरस्वती कण्ठाभरण' की पदवी प्रदान की है। "वाग्देवीसूनु" और "सरस्वतीपुत्र" ये भी इनके उपनाम रहे। वस्तुपाल स्वयं महाकवि ही न थे अपितु कवियों और विद्वानों के
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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