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________________ * जैन गौरव-स्मृतियां कतिपय वस्तुस्थिति की उपेक्षा करने वाले और जैनधर्म से द्वेप रखने वाले लोग आचार्य कालक पर देशद्रोह का कलंक लगाते हैं और उन्हें कल्पित वीभत्स रूप में चित्रित करते हैं परन्तु कोई भी निप्पक्ष विचारक आचार्य कालक के इस कार्य को अन्याय नहीं ठहरा सकता । भारतीय संस्कृति के अनुसार परस्त्री का अपहरण भयंकर अन्याय और भीपणतम अपराध है। भारतभूमि में स्त्रियों के शीलरक्षण उच्च और पवित्र कार्य माना गया है। गर्दभिल्ल इस सीमा तक अन्यायी बन गया कि वह साध्वी सरस्वती को बलात अपनी रानी बनाने के लिये उठा ले गया। भला, इस कार्य से किस भारतीय संस्कृति के आदर्शों के पुजारी का हृदय विक्षुब्ध हुए विना न रहेगा ? ऐसे दुष्टाशय नृपति को पदभ्रष्ट करने में देशद्रोह नहीं अपितु न्याय और व्यवस्था की सुरक्षा है । पक्षपात के चश्मे को दूरकर यदि विचार किया जाय तो आचार्य कालक का यह कार्य देशद्रोह नहीं किन्तु भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा करने वाला प्रतीत हुए विना नहीं रहेगा। गर्दभिल्ल के बाद राज्य करने वाले शक शासक को परमप्रतापी महाराजा विक्रमादित्य ने हराकर उज्जैन पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। इनका समय ई० पू० ५७-५८ है । इनके नाम पर चलने समाट विक्रमादित्य वाला विक्रम संवत् उत्तरभारत में बहुत प्रसिद्ध है।शकों को पराजित करने के कारण इनका बहुत महत्व है। श्री सिद्धसेन दिवाकर ने अपनी प्रकाण्ड पाण्डित्य-प्रतिभा से इस महान मा को अपना शिष्य बनाया था। .. ऐसा कहा जाता है किक्रमादित्य को शालिवाहन ने पदभ्रट कर दिया और उसके बाद उसने अपना शक संवत् ( शालीवाहन संवन ) - चलाया । यह आन्ध्रवंश का था । इसके बाद में दक्षिण में शालीवाहन एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की थी। यह भी जैन राजा थे। गोपगिरि (ग्वालियर ) में राज्य करने वाले कन्नौज के राजा आम को जैनसाधु बप्पभट्ट ने जैन धर्मानुयायी बनाया । बाल्यवस्था में श्राम के पिता kkkkkkkkkkke (३३१) Kkkkkkesta
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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