________________
★ जैन गौरव-स्मृतियां
६२६-६४४ ) में भारत आया था - ने लिखा है कि "कलिंग जैनधर्म का ख्य स्थान है" । इस पर से मालूम होता है कि खारवेल के कई शताब्दियों बाद भी कलिंग में जैनधर्म का परिवल टिका रहा था।
•
उत्तर भारत में जैनधर्म का प्रचार प्राचीन काल से ही रहा है । उस मय भारत में जैनधर्म के मुख्य दो केन्द्र थे । एक तो मथुरा दूसरा उज्जैन। मथुरा से मिले हुए शिलालेख जो ई. पू. दूसरी लव प्रान्त के शताब्दी से लेकर ई. सं० की पाँचवीं शताब्दी तक के हैं - यह जैन नपति प्रमाणित करते हैं कि सुदीर्घकाल तक मथुरा नगर जैनधर्म का मुख्य केन्द्र बना हुआ था । मथुरा के कंकाली टीले से स विषय पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। जैनधर्म का दूसरा केन्द्रस्थल मालव न्ति की राजधानी उज्जैन रहा । भगवान् महावीर के समय में वहाँ का जा चण्डप्रद्योत था । सिन्धु सौवीर के प्रसिद्ध जैन राजा उदायन के साथ
प्रद्योत का संग्राम हुआ था । चण्डप्रद्योत भी भगवान् महावीर का भक्त और अनुयायी था। इसके बाद प्रसिद्ध जैन सम्राट् सम्प्रति ने उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था । सम्प्रति के समय में मालव प्रान्त में जैनधर्म की विपुल उन्नति हुई। इसके बाद के समय भी इस प्रसिद्ध नगरी के विषय जैनग्रन्थों में विगतवार वर्णन मिलता है ।
:
ईसा पूर्व की पहली शताब्दी में उज्जैन में गर्दभिल्ल राजा राज्य करता. । इसने कालकाचार्य की बहन साध्वी सरस्वती का अपहरण कर किया था । कालकाचार्य ने गर्दभिल्ल को बहुत समझाया कि वह इस आचार्यकालक प्रकार का अन्याय न करे परन्तु उसने एक न मानी । तत्र कालकाचार्य ने अपनी बहन को इस अन्याय से मुक्त करने के लिए और अन्यायी को अन्याय का फल चखाने के लिए सिन्ध के शक राजा को प्रेरित किया और उसकी सहायता से वे गर्दभिल्ल को पदभ्रष्ट कर अपनी बहन को मुक्त करने में सफल हुए । शक राजा उज्जैन में रहकर शासन करने लगे । जैनधर्म का प्रभाव जम गया और कालकाचार्य के चरण कमल में सब लोग, भ्रमरों की तरह मंडराने लगे ।
*
***X*XXXXXXXXX(EEO) DXX*******AAA