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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ
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absoved from süi picion. The testimony:ot megasthenes would like.wise soèt to imply that chandra gupta submi. tted to the devotional teaching of the srni anas as opposed the doctrine of the. Brahmanes.s ..... अर्थात् 'चन्द्रगुप्त जैन समाज के व्यक्ति थे', यह जैन ग्रन्थकारों ने एक ऐसी स्वयंसिद्ध और सर्वप्रसिद्ध बात के रूप में लिखा है कि जिसके लिए उन्हें कोई अनुमान प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं रही ? इस विषय में लेखों के प्रमाण बहुत प्राचीन और साधारणतः सन्देह रहित हैं। मेगस्थनीज के कथन से भी झलकता है कि चन्द्रगुप्त ने ब्राह्मणों के विरोध में श्रमणों • (जैनमुनियों) के धर्मोपदेश को अंगीकार किया था । .......
.. इसी प्रकार इतिहास वेत्ता विन्सेन्ट स्मिथ ने भी लिखा है :-... · I am not disposed to believe that the tredior. probably is true in its inain out'ine and that chandragupta really abdicated and became a tain asceticot .
. अर्थात् मुझे अब विश्वास हो गया है कि जौनियों के कथन बहुत करके. - मुख्य २ वातों में यथार्थ हैं और चन्द्रगुप्त सचमुच राज्य त्यागकर जैनमुनि
हुए थे। ... . . . . . . . __ मैसूर प्रान्त के श्रमणबेलगोल नामक स्थान से प्राप्त शिलालेखों से चन्द्रगुप्त के सम्बन्ध में ही नहीं वरन जैन व भारतीय इतिहास पर वड़ा प्रकाश पड़ता है । इसका विस्तृत वर्णन जानने के लिए प्रोफेसर श्री हीरालाल जैन एम. ए. पी. एच. डी. द्वारा सम्पादित "जैन शिलालेख संग्रह भा० १ का अवलोकन करना चाहिये।
उपर्युक्त ऐतिहासिज्ञों के मन्तव्यों से भली भांति सिद्ध हो जाता है कि हातहासप्रसिद्ध यह सर्वप्रथम महाराजाधिराज सम्राट चन्द्रगुप्त जैन थे। - चन्द्रगुप्त के पुत्र सम्राट् विन्दुसार भी अपने पिता के समान ही जैनधर्म के
*Early laith of. Asoka 23. Jouroal of the royal. * V. Swiths E. E. P. 146. ( Asjatiosociety. V0.9,P.116