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Song जैन-गौरव-स्मृतियाँ *
श्री भद्रबाहु स्वामी के शिष्य श्री स्थुलिभद्र बनाये गये । चन्द्रगुप्त भी अपने । पुत्र को राज्य - सौंपकर भद्रबाहु के समीप. मुनि-दीक्षा लेकर उनके साथ .. दक्षिण की ओर चले गये। वहाँ श्रमणवेलगोला पहुँचने पर भद्रबाहु स्वामी . को ऐसा मालूम हुआ कि अब मेरा अन्तिम समय नजदीक है अतः वे वहीं ठहर गये । मुनि चन्द्रगुप्त भी अपने गुरु की सेवा में यहीं रहे। वहीं रहकर । चन्द्रगिरि पर्वत परं इन दोनों महापुरुषों ने समाधिमरण प्राप्त किया। .
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... प्रायः अधिकांश विद्वान् और. इतिहासवेत्ता यह मानते हैं कि सम्राट चन्द्रगुप्त जैनधर्म का उपासक था । मैसूर प्रांत के श्रमणबेलगोला के चन्द्रगिरि पर्वत पर प्राप्त शिलालेखों के अनुसन्धान से इतिहासकारों ने. सम्राट चन्द्रगुप्त के जैनत्व को स्वीकार कर लिया है। प्रसिद्ध इतिहासकार मिश्रबन्धुओं ने अपने "भारतवर्ष का इतिहास" ग्रन्थ के पृष्ट १२१ पर लिखा है:
. "संसार का सबसे पहला सम्राट न केवल. युद्ध में अप्रतिम विजयी था.वरन् शासनप्रणाली में भी पूरा उन्नायक था । संसारीपने...में पड़कर आपने भारी साम्राज्य बनाकर दिखलादिया. और फिर त्याग का ऐसा उदाहरण दिखाया, कि पचास वर्ष से पहले ही अतुल वैभव को लात मारकर साधारण जैनभिन्नु का पद ग्रहण करलिया। इस सम्राट्श्रेष्ठ का शार्य, प्रबन्ध और त्याग, तीनों ही मुक्तकंठ से सराहनीय हैं।"
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..:.::: .:.::, । मैसूर राज्य के प्राचीन शिलालेखों व ऐतिहासिक तथ्यों की खोज करने के बाद मैसूर राज्य के पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष और प्रसिद्ध पुरातत्त्व वेत्ता मि० बी० लुइस राइस में लिखा है कि "चन्द्रगुप्त के. जैन होने में कोई सन्देह नहीं है। ..: ..
मिस्टर टामस लिखते हैं:
k That chandragupta: ivastatinember of the Jain 00 m unity, is taken by their writers as a matter of course, and treaped as a known fäot, which needed neither ar gument vor demonstratio's Thoi documentary evidence to this effect is of comparativel yearly datu andapparently
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