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जैनौरव-स्मृतियां
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और उसकी मुख्य-समृद्धि का विस्तार किया । वैशाली के गण सत्ताक राज्य के प्रमुख महाराजा चेटक जैनश्रावक थे । कलिंग के प्रसिद्ध सम्राट् महा मेघवाहन खारवेल जैनधर्म के प्रबल प्रचारक नरेश थे । जैनधर्म कलिंग का राष्ट्रीय धर्म बना हुआ था। मालव प्रांत के प्रसिद्ध राजा चण्डप्रद्योत और उनका पुत्र पालक जैनधर्मानुयायी थे । विक्रमादित्य पर कालकाचार्य को हद प्रभाव पड़ा था। सिद्धसेन दिवाकर ने विक्रमादित्य को अपनी प्रतिभा से अत्यन्स प्रभावित कर लिया था। गुजरात में परमार्हत कुमारपाल ने जैनधर्म का राष्ट्रीय धर्म घोषित किया था। राजस्थान के कतिपय भागों में जैन मंत्रियों और दीवानों : ने महत्वपूर्ण कार्य करके जैनधर्म का गौरव बढ़ाया । दक्षिणभारत में कई शताब्दियों तक जैनधर्म गंग और राष्ट्रकूट वंश के नरेशों का राजधर्म रहा। इस तरह भारतीय इतिहास के भव्य निर्माण में जैनजाति का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है।
. ', मुगल शासनकाल में और अंग्रेजी शासकों के समय में भी जैन . नरवीरों ने अपना राजनीतिक महत्व अपनी प्रतिभा और दूरदर्शिता के बल पर वनाये रक्खा । भारतीय स्वतंत्रता के संग्राम में भी जैनवीरों ने असाधारण योग प्रदान किया है । तन से, मन से और धन से जैनवीरों ने स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाने में पूरा २ सहयोग प्रदान किया। . ...
तात्पर्य कह है कि प्रागेतिहासिक काल से लेकर आज तक के भारतीय इतिहास में और भारतीय राजनीति में जैनजाति का महत्वपूर्ण हाथ रहा है । जैनवीरों की बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता, शूरवीरता और आत्मबलिदान के कारण भारत के उज्वल इतिहास का निर्माण हुआ है। यही विषय इस . प्रकरण में क्रमशः उल्लिखित करने का प्रयत्न किया जाता है। ......
'कतिपय पाश्चात्य विद्वान और उनका पदानुसरण करने वाले कतिपय. पौर्वात्य विद्वान् भी यह मानते आ रहे हैं कि प्रजातन्त्र शासनप्रणालि को
जन्म देने का श्रेय बीसवीं शताब्दी के यूरोपीय राजगगामनाक प्रजातन्त्र नीतिज्ञों को है। उनके मत के अनुसार भारत में सदा से
ही राजा की निरंकुश शासन-व्यवस्था रही है परन्तु यह उक्त विद्वानों की केवल भ्रान्तधारण ही है। आज से छब्बीस शताब्दियों Kakkakkekekok: (३०६) ek kekskke k