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★ जैन- गौरव स्मृतियों ★
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रक्षा नहीं कर सकते । किन्हीं २ आचार्यों ने स्त्री में तुच्छत्व, अभिमान, मतिमन्दता, इन्द्रियचाञ्चल्य आदि मानसिक दोष वतला कर तथा किन्हीं ने शारीरिक अशुद्धि के कारण को आगे करके इस निषेध का समर्थन किया है परन्तु वस्तुतः सह तत्कालीन परिस्थिति का प्रभावमात्र हैं । वैदिक सम्प्रदाय के स्त्री तथा शूद्र को वेदाध्ययन के लिए अधिकारी बतलाने के अनुकरण से ही यह बात जैन सम्प्रदाय में भी आगई हो, ऐसा प्रतीत होता है । वस्तुतः पारमार्थिक दृष्टि से इस प्रकार का निषेध नहीं किया जा सकता है जैनसंघ स्त्रियों के प्रति उतना ही उदार है जितना वह पुरुषों के प्रति है ।
जैनशास्त्रों में नारी की प्रतिष्ठा का पर्याप्त वर्णन है । आवश्यकता है. उसे व्यावहारिक रूप देने की । यदि सचमुच हमें विकास करना है, यदि भावी प्रजा का भव्य निर्माण करना है, और यदि सर्वतोमुखी प्रगति करना है तो नारी को शिक्षित और समुन्नत करने की ओर पूरा लक्ष्य दिया जाना चाहिए । विकास की समस्त सुविधाएँ उन्हें प्रदान करनी चाहिए | समाज सुधार की मूलज़ड़, नारी की चेतना है । जब तक नारियाँ: अशिक्षित और
संस्कारी है तब तक किसी प्रकार के सामाजिक सुधार की आशा करना दुराशामात्र हैं। स्त्री- शिक्षण और सुसंस्कारों के अभाव में कौटुम्बिक जीवन और सामाजिक जीवन कलुषित बना हुआ है । यदि हम यह चाहते हैं कि हमारे कुटुम्बों में शान्ति, सुव्यवस्था और प्रेम का वातावरण बने तो यह आवश्यक है कि नारी जागरण की ओर पर्याप्त ध्यान दिया जाय । नारी यदि जागृत है, कर्त्तव्य की भावना से ओतप्रोत और सुसंस्कारी है तो वह कुटुम्ब, जाति, समाज, राष्ट्र और विश्व को नवचेतना प्रदान कर सकती हैं। वह सर्वोदय की नीव है । स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि "जो जातियाँ नारियों का आदर करना नही जानतीं वे कदापि उन्नत नहीं हो सकतीं। यदि हम यह चाहते हैं कि स्त्रियाँ सिंह के समान बच्चों को जन्म दें तो क्या हमें उन्हें सिंहनी नहीं बनाना चाहिए ? सियारनी सिंह के बच्चे को जन्म दे सकती है ? कदापि नहीं ।"
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नारी जागरण और शिक्षण से हमारा अभिप्राय यह नहीं हैं कि हमारे समाज की स्त्रियाँ पश्चिम की सभ्यता का अन्धानुकरण करने लग जाएँ । श्राज की कतिपय जागृत और शिक्षित समझी जानेवाली महिलाएँ Kala
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