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Resis
जन-गौरव-स्मृतियां
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ऊपर कहा जा चुका है कि 'नय' वस्तु के एक अंश को ही ग्रहर्ष करता है अतएवं यह आंशिक और आपेक्षिक सत्य है । इस आपेक्षिक सत्य .. को ही. पूर्ण सत्य मान कर जो वस्तु के अन्य अंशों का अपलाप करता है वह नयाभास हो जाता है। विश्व के एकान्तवादी दर्शन नयाभास के उदाहरण हैं।
पहले यह कहा गया है कि जितने वचन-प्रकार हैं उतने ही नयवाद हैं तदपि उन सबका वर्गीकरण करके जैनाचार्यों ने सातःप्रकार के नय बताये हैं:-१ नैगम (२) संग्रह (३) व्यवहार (४) ऋजुसूत्र (५) शब्द (६) समभिरूढ़ .
और (७) एवंभूत । इनमें से आदि के तीन नये द्रव्यार्थिक नय हैं और अन्त के चार नय पर्यायार्थिक हैं। . ........... ..
(१) नैगमनय-यह सामान्य और विषय का भेद किये बिना ही केवल द्रव्यमात्र को ग्रहण करता है। . .. . ... ...
(२) संग्रहनय वस्तु के विशेष धर्म की तरफ लक्ष्य न रखता हुआ केवल ।। सामान्य धर्म पर ही दृष्टि रखने वाला संग्रहनय है। यह विशेष धर्म का । निषेध नहीं करता। . . . . . . . . . . . . . (३) व्यवहार-यह केवल विशेष गुण को लक्ष्य में रखकर ही द्रव्य को देखता है परन्तु सामान्य धर्म का अपलाप नहीं करता है । ...... । (४) ऋजुसूत्र-पदार्थ की अतीत या अनागतं स्थिति का विचार न कर केवल वर्तमान पर्यायं को ग्रहण करने वाला ऋजुसूत्रनय है। (५) शब्द-पदार्थ के पर्यायवाची शब्द, लिंग वचन आदि की भिन्नता को गौण करके उन्हें एक ही अर्थ के वाचक मानने वाला. शब्दनय है। ... (.६) समभिरूढ-पर्यायवाची शब्दों में भिन्नता ग्रहण करने वाला तथा लिंगवचनादि के भेद से अर्थ भेद मानने वाला समभिरूढनय है। (७) एवंभूतनय-जब तक कोई पदार्थ निर्दिष्ट रूप के अनुसार क्रियाशील है तब तक ही वह उस शब्द से सम्बोधित किया जा सकता है अन्यथा नहीं।