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________________ जैन गौरवःस्मृतियां करता है । इस बात को सरलता से समझाने के लिए पूर्वाचार्यों ने हाथी काः दृष्टान्त बतलाया है। वह इस प्रकार है:- ..... .. कुछ जन्मान्ध व्यक्तियों ने हाथी का नाम सुना परन्तु हाथी कैसे होता इस बात का उन्हें ज्ञान नहीं था। किती समय उनके गाँव में हाथी आगया। वे हाथी का परिचय पाने के लिए उसे छूने लगे । वे संवं एकसाथ हाथी के अलग २ अवयव छूने लगे। कोई हाथी के पाँवों के हाथ लगाता है, कोई सूंड पकड़ता है, कोई कान छूता है, कोई पेट टटोलता है, कोई पूछ पकड़ता है। इस प्रकार अपने २ हाथ में आये हुए हाथी के अवयव को वे हाथी समझने लगे। जिसने हाथी का पाँव पकड़ा वह कहने लगा कि हाथी स्तम्भ समान केहै । सूंड पकड़ने वाला बोला कि हाथी मूसल के समान है। कान टटोलने वाला बोला कि हाथी सूप के समान है। पेट पर हाथ फेरने वाला बोला कि हाथी कोठी के समान है। पूंछ पकड़ने वाला बोला कि हाथी रस्से के समान है। इस प्रकार वे अन्धे अपनी २ वात को पूर्ण सत्यं समझकर विवाद करने लगे और एक दूसरे को मिथ्या कहने लगे । ठीक यही हाल एकान्तवादी दर्शनों का है। . . . . . . उक्त जन्मान्धों का कथन एक एक अंश में सत्य अवश्य है परन्तु जव वे अपनी ही धुन में एक दूसरे की बात काटने लगते हैं तब उन सबका कथन असत्य हो जाता है । हाथी को भलीभांति जानने वाला सूझता आदमी जानता है कि उन्होंने सत्य के एक-एक अंश को ही ग्रहण किया है और शेष अंशो को अपलाप कर दिया है । अगर ये लोग अपनी बात को ठीक समझते हुए अन्य को भी सत्य समझे तो इन्हें मिथ्या का शिकार न होना पड़ें। अगर उक्त सब अंधे अपनी एक-एक-देशीय कल्पना को एकत्र करके हाथी का स्वरूप समझे तो उन्हें हाथी की सर्वाङ्ग सम्पूर्ण आकृति का ज्ञान हो सकता है। परन्तु अज्ञान और कदाग्रह के कारण वे एक दसरे को मिथ्या कहकर स्वयं झूठ के पात्र बन रहे हैं। ठीक इसी तरह विश्व में प्रचलित विविध धर्मों के विषय में समझनी चाहिए। : सत्य सर्वत्र एक है, अखण्ड है और व्यापक है । इसके सम्बन्ध में किसी प्रकार के विवाद की गुन्जाईश नहीं है। तदपि धर्म के नाम पर विविध
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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