________________
जैन गौरव-स्मृतियाँ ★
पड़े. यह तो हो नहीं सकता । अन्य के कर्म का फल किसी को मिले यह तो हो नहीं सकता । यदि ऐसा हो तब तो सब व्यवस्था ही छिन्नभिन्न हो जाय । अतः गर्भस्थ प्राणी के सुख-दुःख का कारण उसके पूर्व जन्मकृतपुण्य-पाप हैं, यह सिद्ध होता है ।
(५) कई २ छोटे बालकों में भी असाधारण प्रतिभा और विलक्षणता पाई जाती है। डाक्टर यंग दो वर्ष की अवस्था में पुस्तक पढ लेते थे । इस प्रकार की कई असाधारण बातें समाचार पत्रों में पनेढ़ को मिलती हैं । यह असाधारणता उनके पूर्व जन्म के संस्कारों का परिणाम है | इन प्रमाणों से आत्मा का परलोक में आवागमन सिद्ध होता है ।
*.
1
कर्मवादी समस्त दार्शनिकों ने पुनर्जन्म को स्वीकार किया है। पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मान लेने पर कर्म और कर्मफल में कभी व्यभिचार ( दोष ) नहीं आ सकता है । किये हुए कर्म का फल कभी व्यर्थ नहीं होता है । इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में उसका फल अवश्य भोगना पड़ेगा । इस तरह कर्मवाद यह सिखाता है कि प्राणी स्वयं अपने वर्त्तमान और भावी का निर्माता है । वर्तमान का निर्माण भूत के आधार पर और । भविष्य का निर्माण वर्तमान के आधार पर होता है । तीनों काल की पारस्परिक संगति कर्मवाद पर अवलम्बित है ।
कर्म और आत्मा के सम्बन्ध के विषय में विचारकवर्ग में नाना प्रकार के प्रश्नों का उठना स्वाभाविक हैं । कोई यह शंका करता है कि आत्मा तो अमूर्त हैं और कर्म मूर्त्त हैं, तो अमूर्त के साथ मूर्त का सम्बन्ध कैसे हो सकता है ? कोई यह प्रश्न करता है कि आत्मा का मूल स्वरूप तो शुद्ध-बुद्ध है तो उसके साथ कर्म का सम्बन्ध क्यों हुआ ? कब हुआ ? और कैसे हुआ ? शुद्ध आत्मा के साथ यदि किसी तरह सम्बन्ध होन्ग मान लिया जाय तब तो मुक्तात्मा के साथ भी कर्म का सम्बन्ध क्यों नहीं होगा ? इस प्रकार के प्रश्नों का जैनाचार्यों ने सुन्दर उत्तर दिया है। उनका कहना है कि जिस प्रकार चैतन्य शक्ति अमूर्त है और शराब मूर्त है, तदपि मूर्त्त शराब का अमूर्त चैतन्य शक्ति के साथ
4
XXXXXXXXXXX ̄‹¤)XXXXXXXXXXXXX
कर्म का आत्मा के साथ सम्बन्ध