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* जैन-गौरव-स्मृतियां See
से चैतन्य उत्पन्न होता है अतः जड़पदार्थों से भिन्न आत्मा नामक कोई :: स्वतन्त्र पदार्थ है यह मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। .....
चार्वाक और आधुनिक जड़वादियों की उक्त मान्यता ठीक नहीं है। चैतन्यधर्म जड़पदार्थों का कार्य नहीं हो सकता है। जड़ से जड़ पदार्थ
" की ही उत्पत्ति हो सकती है चैतन्य की नहीं । मद्य के अंगों नात्म-सिद्धी से जो वस्तु प्रकट होती है वह जड़ ही होती है। यकृत से
जो रस निकलता है वह भी जड़ है। इस तरह जड़ से जड़ वस्तु की उत्पत्ति तो हो सकती है परन्तु उससे विरुद्ध धर्म वाली वस्तु की उत्पत्तिकैसे संभवित है ? भूतों में चैतन्य गुण नहीं है। क्योंकि पृथ्वी का गुण तो काठिन्य और आधार है, पानी का गुण द्रवत्व है, तेज का गुण पाचन है, वायु का गुण चलन है और आकाश का गुण स्थान देना है। ये गुण चैतन्य से भिन्न हैं। जिन पदार्थों में चैतन्य नहीं है उनके सम्मिलन से चैतन्य कैसे प्रकट हो सकता है ? जैसे रुक्ष गुण वाली वालुका के समुदाय से स्निग्धत्व गुण युक्त तैल नहीं निकल सकता है इसी तरह जड़ भूतों के समुदाय से चैतन्य प्रकट नहीं हो सकता है । यह कहा जा सकता है कि किण्व (धान्य विशेष) उदक आदि मद्य के अंगों में अलग २ मादक शक्ति नहीं होने पर भी जब उनका संयोग होता है तो उनमें मदशक्ति प्रकट हो जाती है उसी तरह भूतों में पृथक् पृथक् चैतन्य न होने पर भी जब शरीर के रूप में एकत्रित होते हैं तव उनसे चैतन्य प्रकट हो जाता है। यह कथन सर्वथा अयुक्त है। मद्य के अंगों में पृथक् २ मद-शक्ति नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता है । जो शक्ति प्रत्येक अंग में यदि आंशिक रूप
में भी नहीं है तो वह समुदाय में कहाँ से आ सकती है ? किण्व, उदक . आदि में आंशिक मद शक्ति है। वे सव सद-शक्तियाँ मिलती हैं तभी मादकता पैदा होती है । पृथक् २ भूतों में चैतन्य माने बिना समुदित भूतों में चैतन्य आ नहीं सकता। पृथक् २ भूतों में चैतन्य नहीं है. यह प्रत्यक्ष सिद्ध है। अतः चैतन्य भूतों का धर्म नहीं है बल्कि वह आत्मा का धर्म है। यह चैतन्य गुण ही आत्मा के अस्तित्व का द्योतक है।
दूसरी बात यह है कि यदि भूतों से चैतन्य की उत्पत्ति मानी जाय तव तो किसी का मरण ही नहीं होना चाहिए। क्योंकि मृत-शरीर में भी