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EX जैन-गौरव-स्मृतियां
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नवीन उत्पन्न होता है यह बौद्धदर्शन की मान्यता युक्ति-संगत नहीं प्रतीत होती है । ऐसा मानने पर बन्ध मोक्ष व्यवस्था नहीं घटित हो सकती है। कृत प्रणाश और अकृतकर्मभोग का प्रसंग प्राप्त होता है। अर्थात् पूर्वक्षण तो शुभ या अशुभ कर्म करके निरन्वय नष्ट हो गया इसलिए उसे तो. उस कर्म का शुभाशुभ फल नहीं मिल सका इसलिए उसके किये हुए कर्म का विनाश हो गया । और उत्तरक्षणमें शुभाशम कर्म किया नहीं है तदपि उसे उस कर्म का फल भोगना पड़ेगा इसलिए उसे अकृतकर्म भोग होगा। इसी तरह बंधा कोई और ही क्षण, और मुक्त हुआ दूसरा ही क्षण ! यह सब अव्यवस्था एकान्त क्षणिकवाद में उपस्थित होती है। अतः बौद्धदर्शन का क्षणिक बाद भी युक्ति संगत नहीं है। ____ सांख्य दर्शन के अनुसार भी यह विश्व अनादि अनन्त है। कोई इसका स्रष्टा या संहर्ता नहीं है । इसका मन्तव्य है कि पुरुष-आत्मा के साथ अचे
सन तदपि क्रियाशील प्रकति नामक शक्ति मिल गई है। ये सांख्य दर्शन का दोनों ही मिल कर सब क्रियाएँ करते रहते हैं जिससे यह - मन्तव्य विश्व-प्रवाह चल रहा है और चलता रहेगा। सांख्य दर्शन
के अनुसार प्रकृति बीज-रूप पदार्थ है उससे महत् अर्थात् वुद्धि उत्पन्न होती है । बुद्धि से अहंकार उत्पन्न होता है, फिर इन्द्रियाँ पञ्चतन्मात्रा और पञ्च महाभूत आदि जड़ तत्व उत्पन्न होते हैं । इस तरह सांख्य दर्शन प्रकृति से ही विश्व संचालन होना मानता है। योग दर्शन की भी यही मान्यता है। .
इस सम्बन्ध में जैन दर्शन की सांख्य दर्शन के साथ अधिक समानता है । यद्यपि जैन दर्शन न्यायवैशेपिक की तरह परमाणुवादी है, प्रकृतिवादी नहीं है तदपि प्रकृतिवादी सांख्यदर्शन के साथ उसकी अधिक समानता है। पं० सुखलालजी ने इस विषय में ऐसा लिखा है:... जैन परम्परा न्याय वैशेपिक की तरह परमाणुवादी है, सांख्ययोग की तरह प्रकतिवादी नहीं है तथापि जैन परम्परा सम्मत परमाणु का स्वरूप सांख्य परम्परा सम्मत प्रकृति के स्वरूप से जैसा मिलता है वैसा न्याय-वैशेपिक सम्मत परमाणु के स्वरूप के साथ नहीं मिलता, क्योंकि जैन सम्मत -