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* जैन-गौरव-स्मृतियां औ
गृहस्थ में दान भावना का होना धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अनिवार्य है। गृहस्थ यदि अपना और अपने परिवार का ही पालन करने
वाला स्वार्थी हो तो वह पशुओं से उच्च, मानव कहलाने का अतिथि संविभाग अधिकारी नहीं हो सकता है। स्वार्थ की सावता को कस
करने और परमार्थ की भावना का विकास करने के लिए
गृहस्थ में दान का गुण अवश्य होना चाहिए। इसलिए इस व्रत में दान को स्थान दिया गया है।
जैनधर्म के धार्मिक आचारों का ध्यान पूर्वक अध्ययन करने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि इनमें से प्रत्येक व्रत में आचार में अहिंसा और आत्मसंयम की गहरी भावना है । इसकी निर्मल आराधना में शाश्वत कल्याण अन्तर्हित है।
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