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________________ * जैन गौरव-स्मृतियाँ सामान । उक्त वस्तुओं की यावज्जीवन के लिए मर्यादा निश्चित कर लेनी चाहिये इस व्रत के साथ ही साथ जैन गृहस्थ भोगोपभोग के पदार्थों की भी मर्यादा करता है । इस मर्यादा का यदि विवेक पूर्वक ध्यान रखा जाय तो संसार में होने वाले संघर्ष का अन्त हो सकता है। आज दुनिया की सबसे बड़ी समस्या यह है कि एक तरफ करोड़ों लोगों के सामने रोटी का सवाल है जब कि दूसरी तरफ धन और साम्राज्य की अमर्याद महत्वाकांक्षा । इस समस्या का हल भगवान् महावीर के अपरिग्रह व्रत के पालन में है। इस सिद्धांत का अनुशीलन ही विश्व शांति का वास्तविक साधन हो सकता है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप व्रतों की पुष्टि के लिए, गृहस्थ साधक के लिए ३ गुण व्रत और ४ शिक्षा व्रतों का विधान जैन धर्म ने किया है । उनका संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है:- . अणुव्रतों का पोषण करने वाले व्रतों को गुणव्रत कहते हैं। इन गुण व्रतों में प्रथम गुणव्रत दिक्परिमाण व्रत है। इसमें पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, भाग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, उर्च और " दिक्परिमाण · व्रत अधोदिशा में गमनागमन करने की मर्यादा की जाती है। - सव दिशाओ में चारों ओर जीव हैं। अनेक तरह से इन दिशाओं में रहे हुए जीवों के प्रति पाप होता है । इसलिए इससे बचने के लिए क्षेत्र की मर्यादा वांधी जाती है। इस वाँधी हुई मर्यादा से वाहार जाकर हिंसादिपाप कर्मों का त्याग किया जाता है। क्षेत्र मर्यादा कर लेने से उससे बाहर होने वाले आरम्भ समारम्भों से सहज ही बचाया जा सकता है। दूसरी बात यह है कि गमागमन की मर्यादा कर लेने से लोभ वृत्ति पर भी सहज अंकुश लग जाता है। तात्पर्य यह है कि यह दिग्नत अहिंसा और परिग्रह-परिमाण व्रत को पोपण देता है। आनन्दभोग के साधन असंख्य हैं। कितनेक पदार्थ एक बार काम में लिये जा सकते हैं और कितनेक पदार्थ अनेक बार भी काम में आते है । जो पदार्थ एक वार काम में आता है वह भोग कहा जाता भोगोपभोग परिमाण व्रत है जैसे अन्न, माला आदि । जो पदार्थ अनेक बार भी काम में आते हैं वे उपभोग कहे जाते है जैसे वस, 2. भूपण आदि । भोगोपभोग के साधनों से आसक्ति को परिग्रह को और
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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