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ek जैन-गौरव-स्मृतियां.
हो, कुल, जाति तथा धर्म को कलंक लगाता हो, देश में अशान्ति फैलती हो, शिष्ट समाज में अप्रतीति हो-ऐसे स्थूल मृषावाद का त्याग तो गृहस्थ साधक के लिए भी आवश्यक है। वर कन्या को गुण दोषों के सम्बन्ध में किसी को धोखा देने के लिए. मिथ्या भाषण करना, गाय-बैल,आदि चतुष्पद जीवों के गुण-दोषों के सम्बन्ध में मिथ्या भाषण करना, जमीन के लिए मिथ्या भाषण करना, धरोहर को हजम करने के लिए असत्य भाषण करना, बही खातों में या अन्यत्र झूठे लेख लिखना, झूठी साक्षी देना, किसी. पर. झूठा आरोप लगाना, गुप्त.. वातों को प्रकट करना, विश्वास घात करना, झूठी सलाह देना, झूठे दस्तावेज बनाना या जालसाजी करना आदि २ स्थूल मृषावाद हैं। गृहस्थ-श्रावक के लिए भी इनका त्यागी होना आवश्यक है। यह श्रावक का दूसरा अणुव्रत है। ... ..
सत्यव्रत के आराधन में विवेक का बहुत महत्व है। विवेक पूर्वक बोला हुआ वचनं ही सत्य हो सकता है। विवेक के अभाव में कहां हुआ .. सत्य वचन भी असत्यरूप हो जाता है । विवेक सम्पन्न सत्यव्रत धारी व्यक्ति सत्य होने पर भी इस प्रकार का भाषण नहीं करता जिससे दूसरों को पीड़ा पहुंचती है। जैसे काणे को काणा कहना, चोर को चोर कहना, यद्यपि मिथ्या नहीं है तदपि पर पीड़ाकारी होने से सत्य नहीं है। यह ध्यान रखना चाहिये कि वह सत्य, सत्य है जो अहिंसा का बाधक न हो। अहिंसा और सत्य, परस्परं अंबाधित होना चाहिये । जिस सत्य भापण के करने से जीवों का घात होने की सम्भावना है वह भापण कदापि नहीं करना चाहिये। जैसे मार्ग चलते हुए मनुष्य को शिकारी पूछे की क्या तुमने इधर से जाता हुआ मृग-मुंण्ड देखा है ? उस मनुष्य ने मृग-मुण्ड देखा है लेकिन यदि वह 'हाँ' कह कर मार्ग बताता है तो जीवों का घात होता है और यदि 'नहीं' कहता है तो मठ का प्रसंग आता है। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिये ? ऐसी स्थिति में ऐसा उत्तर देना चाहिये कि जिससे न तो प्राणी का घात हो और मिथ्या भापण ही करना पड़े। यदि ऐसा उत्तर न बन पड़े तो मौन रहना. चाहिये । अन्यथा अपवाद रूप से मैं नहीं जानता' ऐसा कहा जा सकता है परन्तु ऐसे प्रसंग पर. पाप को प्रेरणा देने वाला सत्य वचन नहीं कहना चाहिये । तात्पर्य यह है कि व्रतधारी को विवेक बुद्धि से काम लेना चाहिये। 4