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जैन - गौरव स्मृतियां ★
' मोक्षमार्ग
तात्यर्य यह है कि जो पतन से बचाता है और विकास की और ले जाता है वह सच्चा धर्म है । बिकास की पराकाष्ठा मोक्ष है । आत्मा के इस महान् लक्ष्य की और जो ले जाय वह धर्म है । इस धर्म के स्वरूप को व्यक्त करते हुए कहा गया है-" सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः । सम्यग्दर्शन् सम्यग्ज्ञान और सम्मक् चारित्र मोक्षमार्ग हैं | मोक्षमार्ग अर्थात् धर्म ।
सम्यग्दर्शन
सत्यश्रद्धा. सत्यज्ञान और सत्य आचारण की त्रिपुटी ही धर्म का मर्म इन तीनों का त्रिवेणी संगम संसार-सागर से पार करने वाला धर्म-तीर्थ है । सत्य तत्त्व पर अडोल श्रद्धा होना सम्पदर्शन है । यह मोक्ष रूपी महल की नींव है। इसके आधार पर सम्ययग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र टिकते हैं । इसिलिए यह मोक्ष का मूल कहा गया है । मोक्षपथके पथिकको अपने लक्ष्य के प्रति पर्वतकी तरह दृढ़ श्रद्धा होनी चाहिए | इस पथपर चलने वाले साधक को अनेक सम विषय परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है अतः उसके लक्ष्य भ्रष्ट होने की सम्भावना रहती है । यदि साधक की श्रद्धा विचलित हो जाती है तो उसकी दशा बड़ी शोचनीय हो जाती है । इसलिए इस पथ के पथिक को अपनी श्रद्धा का दीप सदा प्रज्वलित रखना चाहिए। यदि यह श्रद्धा-दीप प्रकाश करता रहा तो साधक सुगमता से इस पथ को पार कर अपने लक्ष्य तक पहुँच जाता है । अतः सम्यग्दर्शन को मोक्ष का मूल माना गया है ।
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पदार्थ के यथार्थ स्वरूप को जानना सम्यग् ज्ञान है । सत्य-असत्य, तत्त्वअतत्त्व जड़- चेतन, आत्मभाव - परभाव और हेय उपादेय आदि का ठीक २ निर्णय करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है । ज्ञान के प्रकाश में प्रारणी को आपने कर्त्तव्य और लक्ष्य का भान होता है इसके अभाव में प्राणी आत्मभाव में परभाव और परभाव में आत्मभाव कर रहा है, यह आत्मा के पतन का मूल है । इस मूलको निर्मूल करने के लिए सम्यग्ज्ञान की आश्यकता है । तोते की तरह शब्द ज्ञान कर लेना ही ज्ञान का अर्थ नही है । जिस ज्ञान के द्वारा अध्यात्मिक विकास होता है वही सच्चा ज्ञान है । सम्यग्दर्शन के कारण
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सम्यग्ज्ञान