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________________ पिंडेपणा ११ टिप्पणी- सचित रज की पूंजे ( साफ किये ) विना किसी वस्तु पर पग रखने से सचित्त रजके जीवों का नाश हो जाने का डर है, इसी लिये ऐसा करने का निषेध किया है । [ ८ ] ( जलकायिक इत्यादि जीवों की रक्षा के लिये) वरसात पड रहीं हो, कोहरा पड रहा हो, ग्रांधी आ रही हो अथवा खूब धूलउड रही हो तथा मक्खी, मच्छर, पतंगिया आदि अनेक प्रकार के जीव उड़ रहे हों ऐसे मार्ग में भी इन समयों में संयमी पुरुष को गोचरी के लिये कदापि नहीं जाना चाहिये । [8] (अब ब्रह्मचर्य की रक्षा के विषयमें कहते हैं कि ) संयमी पुरुष उस प्रदेशमें, गोचरी के लिये न जाय जिसमें अथवा जिसके आसपास ब्रह्मचर्य की घातक वेश्याएं रहती हों क्योंकि दमितेन्द्रिय एवं ब्रह्मचारी साधक के चित्त में इनके कारण समाधिहोने की आशंका होती है । टिप्पणी- वेश्या अर्थात् चारित्रहीन स्त्री । उसके घरमें तो क्या, किन्तु उसके आसपास के प्रदेशमें भी ब्रह्मचारी को नहीं जाना चाहिये क्योंकि विकार के वीज किन संयोगोंमें, किस समय अंकुरित हो उठेंगे इसका कोई नियम नहीं है, इस लिये सतत जागृत रहना ही उत्तम है । [१०] दूसरी बात यह भी है कि ऐसे कुस्थानों पर जाने से वहां के वातावरण का संसर्ग वारंवार होगा । उस संसर्ग से श्रनेक प्रकार के संकल्प विकल्प होंगे और उन संकल्प विकल्पों से सव व्रतोंमें पीडा ( श्राकुलता ) उत्पन्न होने की आशंका है और (दूसरों को) साधु की साधुतामें संशय हो सकता है । टिप्पणी - एकवार ब्रह्मचर्य का संकल्प होते ही अन्य महाव्रतों मेंशिथिलता आये विना नहीं रहती । और व्रतोंमें शिथिलता होते ही साधुता का लोप हो जाता है, क्योंकि साधुता की नींव नियमों के अडग पालन पर
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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