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दशवैकालिक सूत्र
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से असत्यभापण नहीं करूंगा; दूसरों से असत्यभाषण कराऊंगा नहीं और सत्य - भाषी की अनुमोदना भी नहीं करूंगा और पूर्व कालमें मैंने जो कुछ भी असत्य भाषण द्वारा पाप किया है उससे मैं निवृत्त होता हूं। अपनी आत्माकी साक्षीपूर्वक उस पापकी निंदा करता हूँ; आपके समक्ष मैं उसको गर्हणा करता हूं और अबसे ऐसे पापकारी कामसे अपनी आत्मा को सर्वधा विरक्त करता हूं ॥ २ ॥
शिष्यः - हे गुरुदेव ! तीसरे महाव्रत में क्या करना होता है ? गुरुदेवः - हे भट्ट ! तीसरे महाव्रत में श्रदत्तादानका सर्वथा त्याग करना पडता है ।
शिष्यः - हे पूज्य ! मैं अदत्तादान (विना हक को अथवा विना दो हुई वस्तुका ग्रहण) का सर्वथा त्याग करता हूँ ।
गुरुदेवः - गांव में, नगर में, अथवा वन में किसी भी जगह थोडी हो या अधिक छोटी वस्तु हो या वडी सचित्त (पशु, मनुष्य, इत्यादि सजीव वस्तु) हो या चित्त, उसमेंसे विना दी हुई किसी भी वस्तुको स्वयं ग्रहण न करना चाहिये न दूसरों द्वारा ग्रहण कराना चाहिये और न वैसे ग्रहण करनेवाले की प्रशंसा ही करनी चाहिये ।
शिष्यः - हे पूज्य ! मैं जीवनपर्यंत उक्त तीनों करणों (कृत, कारित, अनुमोदन ) तथा तीनों योगोंसे चोरी (अदतादान) नहीं करूंगा, न कभी दूसरे के द्वारा कराऊंगा और न किसी चोरी करनेवाले की अनुमोदना ही करूंगा ! तथा पूर्वकाल में तत्संबन्धी मुझसे जो कुछ भी पाप हुआ है उससे मैं निवृत्त होता हूं | अपनी आत्माकी साहीपूर्वक पापकी निंदा करता हूं; आपके समक्ष मैं उसकी गर्हणा करता हूं और अबसे ऐसे पापकारी कामसे अपनी यात्मा को सर्वथा विरक्त करता हूं ॥ ३ ॥