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पडूं जीवनिका
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(अग्निकायिक जीव के सिवाय और कोई दूसरी ) जाति का शस्त्र न परिणामे (लगे) तबतक श्रग्नि सचित्त कहलाती है किन्तु अन्य जातीय जीवों के साथ संपर्क होते ही उनका नाश हो जाता है और उनके जीवरहित हो जाने से अनि 'चित्त ' कहलाती है ।
[४] वायु कायमें भी पृथक् २ अनेक जीव होते है और जबतक उनका अन्य जातीय जीव के साथ संपर्क न हो तबतक वह सचित रहती हैं किन्तु वैसा संपर्क होते ही वह श्रचित्त हो जानी है ।
द्वारा हवा करने से वायुकायिक
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शस्त्र कहा गया है।
पांचों प्रकार के स्थावर
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टिप्पणी- पंखा (वीजना) आदि , जीवों का नाश होता है इसलिये उसे वायु खास ध्यान देने की बात यह है कि जीवों को पुनः पुनः 'काय' कहा गया है, जैसे पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय वायुकाय वनस्पतिकाय । काय } शब्द का वार २ अर्थ ' समूह ' होता है । उक्त पांचों प्रकारों के साथ " काय ' शब्द का । व्यवहार कर आचार्यों ने इस गूढार्थ की तरफ निर्देश किया है कि ये जीव सदैव समूह रूप मेंसंख्या में असंख्य - ही रहा करते हैं । ये असंख्य जीव एक ही साथ एक ही शरीर में जन्म धारण करते हैं और एक ही साथ मृत्यु को भी प्राप्त होते हैं । ये पांचों प्रकार के जीव, जहां कहीं भी, जिस किसी भी रूपमें रहेंगे वहां संख्या में अनेक हो होंगे । वनस्पतिकायिक जीव को छोडकर पृथ्वीकायिक आदि एक जीव का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं हो सकता । वनस्पति कायके जीव दो प्रकार के होते हैं (१) प्रत्येक और ( २ ) साधारण । प्रत्येक वनस्पति में शरीरका मालिक एक ही जीव होता है किंतु साधारण वनस्पति के शरीर में असंख्य जीव होते हैं । द्वींद्रियादि जीवों में यह बात नहीं है । वे प्रत्येक जीव अपने शरीरका स्वतंत्र मालिक है उसके जीवके आधार पर रहने वाला और कोई दूसरा त्रस जीव नहीं होता ।
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