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दुम पुष्पिका
[२भ्रमर के समान सुचतुर मुनि (जो घर एवं कुटुंब से सर्वथा)
अनासक्त तथा किसी भी प्रकार के भोजन में संतुष्ट रहने के अभ्यासी होने से दमितेन्द्रिय होते हैं, इसी कारण वे 'श्रमण' कहलाते है।
टिप्पणी-अनासक्ति, दान्तता (दमितेन्द्रियता) एवं जो कुछ भी मिल जाय उसीमें सन्तोष रखना ये तीन महान गुण साधुता के हैं। जो कोई भी मन, वचन और काय का दमन, ब्रह्मचर्य का पालन, कपायों का त्याग और तपश्चर्या द्वारा आत्मसिद्धि करता है वही सच्चा साधु है।
ऐसा मैं कहता हूं:इस प्रकार 'द्रुमपुष्पिका' नामक प्रथम अध्ययन संपूर्ण हुआ।